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गा० २२ ]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए पदणिक्खेवे सामित्तं
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इहिस्स | इत्थि स ० चदुणोकसाय० [उक्क० ] बड़ी मिच्छत्तभंगो । अवद्वाणं णत्थि । हाणी भय-दुर्गुछभंगो। जेसिमुदयो णत्थि तेसिं पि थिउक्कसंकमेणं पयदसिद्धी वत्तव्या । पढमाए एवं चैव । णवरि अप्पणी पुढवीए उववज्जावेचव्वो । विदियादि जाव सत्तमा त्ति एवं चेत्र । णवरि अष्पष्पणो पुढवीए णामं घेत्तूण उववज्जावेयव्वो । णवरि सम्पत्तस्स उक्क० हाणी कस्स ? अण्णद० गुणिदकम्मंसियस्स सम्मत्तं पडिवज्जियूण अनंताणुबंधि विसंजोय दिस जाधे गुणसेढिसीसयाणि उदयमागयाणि ताधे तस्स उक० हाणी । बारसक० - णवणोक० उक्क० हाणी एवं चेव ।
| ३४६. तिरिक्खगईए तिरिक्खेसु मिच्छत्तस्स उक्कस्सिया वड्डी कस्स १ अण्णद० खविदकम्मं सिओ विवरीदं गंतूण तिरिक्खगईए उववण्णो सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जतय दो उक्कस्सजोगमुक्कस्ससं किलेसं च गदी तस्स उक० बढी । तस्सेव से काले उकस्सयमवद्वाणं । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? अण्णद० गुणिदकम्मंसियस्स संजमा संजम - संजम सम्मत्तगुणसेढीओ काढूण मिच्छत्तं गदो तदो अविणद्वासु गुणसेढीसु तिरिक्खेलु उववण्णस्स तस्स जाधे गुणसेडिसीसयाणि उदयमागदाणि ताधे मिच्छत्तस्स उक्क० हाणी । अथवा रइयभंगो । सम्मत्त० -सम्मामि० उक्कस्सिया वडी कस्स ? अण्णद० गुणिदकम्मं सिय
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सम्यग्दृष्टिके होता है । स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और चार नोकषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका भङ्ग मिथ्यात्व के समान है । इनका अवस्थान नहीं है । इनकी उत्कृष्ट हानिका भङ्ग भय और जुगुप्सा के समान है । तथा जिन प्रकृतियोंका उदय नहीं है उनकी भी स्तिवुकसंक्रमण से प्रकृत विषयकी सिद्धि करनी चाहिए। पहली पृथिवी में इसीप्रकार भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी पृथिवीमें उत्पन्न कराना चाहिए। दूसरी से लेकर सातवीं पृथिवी तक इसीप्रकार भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी पृथिवीका नाम लेंकर उत्पन्न कराना चाहिए । इतनी और विशेषता है कि सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकर्माशिक जीव सम्यक्त्वको प्राप्त होकर और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करके स्थित है उसके जब गुणश्रेणिशीर्ष उदयको प्राप्त होते हैं तब उसके सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट हानि होती है । बारह कषाय और नौ नोकषायोंका भङ्ग इसीप्रकार है ।
६ ३४६. तिर्यञ्चगतिमें तिर्यञ्चों में मिध्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर क्षपितकर्माशिक जीव विपरीत जाकर तिर्यञ्चगतिमें उत्पन्न हो और सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो उत्कृष्ट योग और उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । तथा उसी के अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकर्माशिक जीव संयमासंयम, संयम और सम्यक्त्वकी गुणश्रेणियाँ करके मिध्यात्वको प्राप्त हो अनन्तर गुणश्रेणियोंके नष्ट हुए बिना तिर्यश्र्चों में उत्पन्न हुआ उसके जब गुणश्रेणिशीर्ष उदयको प्राप्त हुए तब उसके मिध्यात्वकी उत्कृष्ट हानि होती है । अथवा इसका भङ्ग नारकियोंके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकर्माशिक
१. ता०प्रतौ 'छिउक्कसंकमेण' इति पाठः । २. ता०प्रतौ ' एवं चेव । गामं घेत्ता । विदियादि' इति पाठः ।
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