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गा० २२ ]
उत्तरपयडिपदेस विहत्तीए पदणिक्खेवे सामित्तं
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गुणिदकम् मंसियो जो सत्तमाए पुढवीए रइयो कम्ममं तो मुहुत्ते गुणेहिदि ति सम्मत्तं पडिवो अंतोमुहुत्तेण श्रणतारणुबंधी विसंजोजयंतेरा तेण अपच्छिमे हिदिखंड संकामिदे तस्स उक्क० हाणी । अट्ठएहं कसायाणमुक्कसवडी अवद्वाणं मिच्छत्तभंगो । उक्क० हाणी कस्स ? गुणिदकम्मं सियस्स अणियट्टिखवगस्स अहं कसायाणमपच्छिमे द्विदिखंडए संकामिदे तस्स उक्क० हाणी । तिन्हं संजलणाणमाहकसायभंगो | लोहसंजलणस्स एवं चेव । णवरि सुहुमसांपराइयस्स चरिमसमए उक्क० हाणी । इत्थि स ० - हस्स- रइ- अरइ- सोगाणमुक्क० वड्डी मिच्छत्तभंगो । उक्क० हाणी कस्स १ अणद० गुणिदकम्मं सियस्स खवगस्स चरिमे द्विदिखंडए चरिमसमयकामिदे इत्थि - स० उक० हाणी । हस्स - रइ- अरइ सोगाणमुक्क० हाणी गुणिदकम्मंसियस्स खवगस्स चरिमडिदिखंडयदुचरिमसमयसंकामयस्स । पुरिसवेद० उक्क० बड़ी मिच्छत्तभंगो । अवद्वाणं कस्स : अरणद० असंजदसम्माइहिस्स अवद्विदपाओग्गसंतकम्मिएण उक्कसवड काढूणावद्विदस्स तस्स उक्क० अवद्वाणं । उक्क ० हाणी कस्स १ अण्णद० गुणिदकम्मं सियस्स खवगस्स चरिमहिदिखंडयं विणासेमाणगस्स उक्क० हाणी | भय-दुगुं छाणं वड्डि-अवद्वाणमुकस्सं मिच्छत्तभंगो । उक्क० हाणी कस्स १ अण्णद० गुणिदकम्मं सियस्स खवगस्स चरिमडिदिखंडय दुचरिमसमए वट्टमाणगस्स । गुणितकर्माशिक सातवीं पृथिवीका नारकी जीव कर्मको अन्तर्मुहूर्त के द्वारा गुणित करेगा, इसलिए सम्यक्त्वको प्राप्त होकर अन्तर्मुहूर्तके द्वारा अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करते हुए जब अन्तिम स्थितिकाण्डकका संक्रमण करता है तब उसके अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट हानि होती है। आठ कषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानका भङ्ग ! मिथ्यात्वके समान है । इनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक अनिवृत्तिक्षपक जीव आठ कषायोंके अन्तिम स्थितिकाण्डकका संक्रमण करता है उसके इनकी उत्कृष्ट हानि होती है। तीन संज्वलनोंका भङ्ग आठ कषायों के समान है । लोभसंज्वलनका भङ्ग इसीप्रकार है । इतनी विशेषता है कि सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समय में इसकी उत्कृष्ट हानि होती है । स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी उत्कुष्ट वृद्धिका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है । इनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकर्माशिक क्षपक जीव अन्तिम स्थितिकाण्डकका अन्तिम समय में संक्रमण कर रहा है उसके स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट हानि होती है। तथा जो गुणितकर्माशिक क्षपक जीव हास्य, रति, रति और शोकके अन्तिम स्थितिकाण्डकके द्विचरम समय में संक्रमण कर रहा है उसके इनकी उत्कृष्ट हानि होती है । पुरुषवेदकी उत्कृष्ट वृद्धिका भङ्ग मिध्यात्वके समान है। इसका उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है ? जो अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि जीव अवस्थितप्रायोग्य सत्कर्मके साथ उत्कृष्ट वृद्धि करके अवस्थित है उसके इसका उत्कृष्ट अवस्थान होता है । इसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकर्माशिक क्षपक जीव चरम स्थितिकाण्डकका विनाश कर रहा है उसके इसकी उत्कृष्ट हानि होती है । भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानका भङ्ग मिथ्यात्व के समान है । इनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्तर गुणितकर्माशिक क्षपक जीव अन्तिम स्थितिकाण्डकके द्विचरम समय में विद्यमान है उसके इनकी उत्कृष्ट हानि होती है ।
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