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________________ १७४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ हाणी कस्स ? अण्णद० जो गुणिदकम्मंसिओ सत्तमादो पुढवीदो हिस्सरिदसमाणो दो-तिण्णि भवे पंचिंदिएबादरेइंदिएसु च गमेदूण तदो मणुस्सेसु गम्भोवक्कतिएसु जादो सव्वलहुँ जोणिणिक्खमणजम्मणेण जादो अवस्सिओ सम्मत्तं पडिवज्जिय दसणमोहक्खवणाए अब्भुहिदो तेण मिच्छत्तं खविज्जमाणं खविदं जाधे' अपच्छिम. हिदिखंडगं चरिमसमयसंछुब्भमाणगं संछुद्धं ताधे तस्स मिच्छत्तस्स उक्क० हाणी। सम्मत्त०-सम्मामि० उक० वट्टी कस्स १ अण्णद. जो गुणिदकम्मसिओ सत्तीए पुढवीए णेरइओ अंतोमुहुत्तेण मिच्छत्तमुक्कस्सं काहिदि त्ति विवरीयं गंतूण सम्मत्तं पडिवण्णो । तत्थ सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तागि गुणसंकमेण पूरिदाणि अंतोमुहुत्तमसंखेज्जगुणाए सेढीए सो से काले विज्झादं पडिहिदि त्ति तस्स उक्क० वड्डी। अथवा दंसणमोहक्खवगेण गुणिदकम्मंसिएण जाधे मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्ते पक्वित्तं ताधे सम्मामिच्छत्तस्स उक० वड्डी । तेणेव जाधे सम्मामिच्छत्तं सम्मत्ते पक्खित्तं ताधे [सम्मत्तस्स उक० वड्डी]। सम्म० उक्क० हाणी कस्स ? अण्णद० गुणिदकम्मंसियस्स अक्खीणदंसणमोहणीयस्स चरिमसमए वट्टमाणस्स । सम्मामि० उक्क० हाणी कस्स ? गुणिदकम्मसिएण सम्मामिच्छत्तं सम्मत्ते जाधे संपक्वित्तं ताधे तस्स उक्क० हाणी । अणंताणु०४ उक्क० वड्डी अवहाणं च मिच्छत्तभंगो। उक्क० हाणी कस्स ? अण्ण. मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकांशिक जीव सातवीं पृथिवीसे निकल कर तथा दो तीन भव पञ्चन्द्रियों और बादर एकेन्द्रियोंमें बिता कर अनन्तर गर्भज मनुष्योंमें उत्पन्न होकर अतिशीघ्र योनिसे निकलने रूप जन्मसे आठ वर्षका होकर तथा सम्यक्त्वको प्राप्त हो दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके लिए उद्यत हुआ। उसने क्षयको प्राप्त होनेवाले मिथ्यात्वका क्षय करते हुए जब अन्तिम स्थितिकाण्डकका अन्तिम समयमें संक्रमण किया तब उसके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर गुणितकांशिक जीव सातवीं पृथिवीमें नारकी होकर अन्तमुहूतमें मिथ्यात्वको उत्कृष्ट करेगा किन्तु विपरीत जाकर और सम्यक्त्वको प्राप्त होकर वहाँ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको गुणसंक्रमके द्वारा अन्तर्मुहूर्त काल तक असंख्यातगुणी गुणश्रेणिरूपसे पूरकर अनन्तर समयमें विध्यातको प्राप्त होगा ऐसे उस जीवके उत्कृष्ट वृद्धि होती है । अथवा दर्शनमोहनीयका क्षपक जो गुणितकांशिक जीव जब मिथ्यात्वको सम्यग्मिथ्यात्वमें प्रक्षिप्त करता है तब उसके सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। तथा वही जब सम्यग्मिथ्यात्वको सम्यक्त्वमें प्रक्षिप्त करता है तब सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर दर्शनमोहनीयका क्षय करनेवाला गुणितकांशिक जीव अन्तिम समयमें विद्यमान है उसके सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट हानि होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकांशिक जीव जब सम्यग्मिथ्यात्वको सम्यक्त्वमें प्रक्षिप्त करता है तब उसके सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि होती है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। इनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्यतर . १, ता०प्रतौ 'जादे (धे) प्रा०प्रतौ 'जादे' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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