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जयला सहिदे कसाय पाहुडे
९ ३३१. अणुद्दिसादि जाव श्रवराइदा तिमिच्छ० सम्म ०. अर्णताणु ० चक्क० - इत्थवेद० णवुंस० अप्प० सम्वद्धा । दुर्गुछा ० - हस्स - रइ- अरइ-सोगाणं देवोघो । एवं सव्वह । असंखे० भागो तम्हि संखेज्जा समया । एवं जाव अणाहारि ति ।
नाणाजीवेहि कालो समत्तो ।
$ ३३२. णाणाजीवेहि अंतरं दुविहो णिद्द े सो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०- सोलसक०-भय-दुगुंछा० तिणिपदा णत्थि अंतरं निरंतरं । अनंताणु ० चउक्क० अवत्त० जह० एगस०, उक्क० चडवीसमहोरताणि सादिरेयाणि । एवं सम्म०सम्मामि० ० अवत० । सम्म० सम्मामि० अप्प० णत्थि अंतरं निरंतरं । भुज० जह० एगस०, उक्क० सत्त रादिंदियाणि । अवद्वि० जह० एस ०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । छण्णोक० भुज० अप्प० णत्थि अंतरं । अवद्वि० जह० एगस०, उक्क० वासपुधतं । एवं पुरिस० । णवरि अवद्वि० जह० एगस०, उक० असंखेज्जा लोगा । उवसमसेदिविवक्खाए पुण वासपुधत्तं ।
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[ पदेसहित ५
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०- सम्मामि०
विशेषार्थ - यह सान्तर मार्गणा है, इसलिए इसमें उक्त काल बन जाता है ।
$ ३३१. अनुदिशसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी अल्पतरविभक्तिका काल सर्वदा है । बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, हास्य, रति, अरति और शोकका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है । इसीप्रकार सर्वार्थसिद्धिमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जहाँ श्रवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल कहा है वहाँ संख्यात समय काल कहना चाहिए । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
इसप्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा काल समाप्त हुआ ।
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बारसक० - पुरिस०-भयणवरि जम्हि आवलि०
$ ३३२. नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर कालका निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । श्रघसे मिध्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके तीन पदोंका अन्तर काल नहीं है वे निरन्तर हैं । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है । इसीप्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्व की वक्तव्यविभक्तिका अन्तर काल जानना चाहिए। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर विभक्तिका अन्तर काल नहीं है वह निरन्तर है। भुजगारविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय कृष्ट अन्तर सात दिन-रात है । अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। छह नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्ति अन्तर काल नहीं है । अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व प्रमाण है । इसीप्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । परन्तु उपशमश्रेणिकी विवक्षासे वर्ष पृथक्त्वप्रमाण है ।
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