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________________ AAAgronomna newne गा० २२]: उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए भुजगारे णाणाजीवेहि कालो अप० सत्तणोक० भुज०-अप्प० सव्वदा। ३२६. मणुसगईए मणुसाणं गैरइयभंगो। गवरि तिहमवत्त० पुरिस० अवहि० जह० एगस०, उक्क० संखेजा समया । सम्म०-सम्मामि० भुज०-अवहि० जह० अंतोमु० एग०, उक्क० अंतोमुं० । एवं मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु । णवरि सव्वेसिं अवहि० जह० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया । उवसमसेढीए मणुसतियम्मि बारसक०-णवणोक० अवहि० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । ३३०. मणुसअपज्ज० मिच्छ०-सोलसक०-भय-दुगुंडा० भुज०-अप्प. जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। अवहि. जह० एगस०, उक. आलि. असंखे०भागो। सम्म०-सम्मामि० अप्पद० सत्तणोक० भुज०-अप्पद० जह० एगस०, उक्क. पलिदो० असंखे०भागो। सम्यग्मिध्यात्ववकी अल्पतरविभक्तिका तथा सात नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्तिका काल सर्वदा है। ६ ३२६. मनुष्यगतिमें मनुष्योंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्क, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन तीनकी अवक्तव्यविभक्तिका तथा पुरुषवेदकी अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार और अवस्थितविभक्तिका क्रमसे जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और एक समय है तथा दोनों विभक्तियोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सबकी अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। उपशमणिमें मनुष्यत्रिकमें बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ-उपशमश्रेणिमें बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अवस्थितविभक्ति ऐसे जीवोंके भी होती है जो इनका एक समय तक अवस्थित पद करके और दूसरे समयमें मरकर देव हो जाते हैं। तथा जो उपशमश्रेणिमें इनका अवस्थितपद करके आरोहण और अवरोहण करते हैं उनके अन्तर्मुहूर्त काल तक इनकी अवस्थितविभक्ति होती है। कुछ जीव यहाँ अवस्थितपद करनेके बाद उसके समाप्त होनेके अनन्तर समयमें भी यदि नाना जीव अवस्थितपद करें और इसप्रकार निरन्तर क्रम चले तो भी अन्तर्मुहूर्त काल लगता है, इसलिए मनुष्यत्रिकमें उक्त प्रकृतियोंके इस पदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है। ६३३०. मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार और अल्पतरविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतरविभक्तिका तथा सात नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। • १. ताप्रती 'अवटि० उक्क० अंतोमु इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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