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गा० २२ ]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए भुजगारे फोस
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अवद्वि० केव० फोसिदं १ लोग० असंखे ० भागो सत्त चोइस० । इत्थि० - पुरिस० भुज० पुरिस० अवधि० लोग० असंखे० भागो । दोण्हमप्प० णवुंस० चदुणोक० भुज०अप्प० लोग० असंखे० भागो सव्बलोगो वा । छष्णोकं० अवद्वि० खेत्तभंगो |
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९ ३२३. देवगईए देवेसु मिच्छ० - सोलसक० ०-भय-दुगु छ० भुज० अप्प ० - अवधि ० लोग० असंखे ० भागो अट्ठ-णवचोदस० । अनंताणु ० चउक्क० अवत्त० सम्म० ० - सम्मामि० भुज ० - अवत्त० लोग० असंखे० भागो अहचोदस० । सम्म० - सम्मामि० अप्पद०raiso केव० फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो अट्ठ-णवचोदस० । इत्थि० भुज० पुरिस० भुज० - अवद्वि० लोग० असंखे० भागो अट्ठचोद० । दोहमप्प० लोग० असंखे० भागो अह णवचोद्दस० । पंचणोक० भुज० - अप्प० लोग० असंखे ० भागो अट्ठ-णवचो६० । एवं सोहम्मीसाणेसु ।
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सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इनकी अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसानाली में कुछ कम सात बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी भुजगारविभक्तिवाले तथा पुरुषवेद की अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । दोनोंकी अल्पतरविभक्तिवाले तथा नपुंसकवेद और चार नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । छह नोकषायोंकी अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है ।
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§ ३२३. देवगतिमें देवोंमें मिध्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवें भाग तथा त्रसनाली के कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिवाले तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है । लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेदकी भुजगारविभक्तिवाले तथा पुरुषवेदकी भुजगार और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनाली के कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दोनोंकी अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पाँच नोकपायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पके देवों में जानना चाहिए ।
विशेषार्थ – देवोंमें स्त्रीवेदकी भुजगारविभक्ति तथा पुरुषवेदकी भुजगार और अवस्थित - विभक्ति ऊपर बादर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुदूघात करते समय सम्भव नहीं है, इसलिए
१. वा०० प्रत्योः 'सशयोक०' इति पाठः
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