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१६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[पदेसविहत्ती ५ सबलोगो वा । पंचणोक० भुज०-अप्प० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा ।
३२१. पंचिं०तिरि०अपज्ज० मिच्छ०-सोलसक०--भय-दुगुंछ० भुज०-- अप्प०-अवहि. केव० फोसिदं ? लोग. असंखे०भागो सव्वलोगो वा। सम्म०सम्मामि० अप्प० केव० फोसिदं ? लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । इत्थिपुरिस० भुज. लोग० असंखे भागो। अप्प० केव० फोसिदं ? लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा। णस०-चदुणोक० भज०-अप्प. केव० फोसिदं ? लोग० असंखे०. भागो सव्वलोगो वा। एवं मणुसअपज्जत्तए ।
३२२. मणुसतिए मिच्छ०-सोलसक०-भय-दुगुंछ० भुज०-अप्प०-अवहि. लोग० असं० भागो, सबलोगो वा । अणंताणु० चउक० अवत्त० सम्म०-सम्मामि० भुज०-अवत्त० लोग० असंखे०भागो । दोण्हमप्प० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा। असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पाँच नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र का स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ—यहाँ सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वके अवस्थित पदवालोंका लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम सात बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन जिस प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें घटित करके बतला आए हैं उस प्रकार घटित कर लेना चाहिए। स्त्रीवेदकी अल्पतरविभक्तिवाले उक्त जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन तथा पुरुषवेदकी अवस्थितविभक्तिवाले उक्त जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन क्यों किया है इसका स्पष्टीकरण मूल में ही किया है । शेष कथन सुगम है।
६३२१. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तक जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी भुजगारविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अल्पतर विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नपुंसकवेद और चार नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए।
विशेषार्थ-जो पश्चन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त तियञ्च एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते हैं उनके स्त्रीवेद और पुरुषवेदका बन्ध न होनेसे भुजगारपद सम्भव नहीं है, इसलिए इनके उक्त पदवाले जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है।
६३२२. मनुष्यत्रिकमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी श्रवक्तव्यविभक्तिवाले तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दोनोंकी अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और
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