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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए भुजगारे फोसणं ક્ષણ ६३२०. पंचिंदियतिरिक्वतिए मिच्छ०-सोलसक०-भय-दुगुंछ० भुज०-अप्प०अवहि. केव० १ लो० असंखे०भागो सबलोगो वा। अणंताणु० चउक्क० अवत्त० सम्म-सम्मामि० भुज०-अवत्त० केव० फोसिदं ? लोग० असंखे भागो । दोण्हमप्पद० लोग० असंखे भागो सव्वलोगो वा । अवष्टि० लोग० असंखे०भागो सत्तचोदस० । इथि० भुज० केव० ? लो० असंखे०भागो। अप्प० लोग० असंखे०भागो सबलोगो वा । कुदो १ णसयवेदबंधेण एइंदिरसुववज्जमाण पंचिंदियतिरिक्खतियस्स अप्पदरीकयइत्थिवेदस्स सव्वलोयवावित्तदंसणादो। पुरिस भुज० केव० फोसिदं ? लोग० असंखे०भागो छचोदस० । अवहि० लोग० असंखे० भागो। कुदो छचोदसभागा ण फसिज्जति ? ण, असंखेज्जवासाउअपंचिंदियतिरिक्खतियसम्माइहिं मोत्तण अण्णत्थ अवहिदपदस्सासंभवादो। तं पि कुदो ? पलिदो० असंखे०भागमेत्तकालेण विणा अवहिदपाओग्गत्ताणुवलंभादो । अप्प. केवः फोसिदं ? लोग० असंखे भागो स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम सात बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है । ६३२०. पञ्चन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिवाले तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है। लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दोनोंकी अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इनकी अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम सात बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेदकी भुजगारविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है, क्योंकि नपुंसकवेदके बन्धके साथ एकेन्द्रियों में उत्पन्न होनेवाले पञ्चेन्द्रिय तियश्चत्रिकका स्त्रीवेदके अल्पतर पदके साथ समस्त लोकमें स्पर्शन देखा जाता है । पुरुषवेदकी भुजगारविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम छह बढे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसकी अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शंका-पुरुषवेदकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन क्यों नहीं करते ? समाधन-नहीं, असंख्यात वर्षकी आयुवाले पञ्चेन्द्रिय तियञ्चत्रिक सम्यग्दृिष्ट जीवको छोड़कर अन्यत्र अवस्थित पदकी प्राप्ति असम्भव है । शंका-वह भी कैसे है ? समाधान-क्योंकि पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके बिना अवस्थितपदकी योग्यता नहीं उपलब्ध होती है। पुरुषवेदकी अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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