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________________ जयधवला सहिदे कसाय पाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ तोमु ९ २८६ आदेसेण रइएस मिच्छ० भुज० जह० एगस०, उक्क० पलिदो ० असंखे ० भागो । अप्प ० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीस सागरोवमारिण देसूणाणि । raso ० जह० एस ०, उक्क० संखेज्जा समया छावलिया वा । एवमणताणु ० चउक्कस्स | वरि अवत्त • जहण्णुक्क० एस० । अवद्विदस्स वि संखेज्जा चेव समया उकस्सकालो वतव्वो । सम्म० - सम्मामि० भुज० जह० उक्क० ० । अप्प० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीस सागरोवमाणि । अवत्त० जहण्णुक्क एगसमय । अवहि ० अभंगो । बारसक० - पुरिस०-भय- दुगुंछ० भुज ०-अप्प० जह० एस ०, उक्क० पलिदो ० असंखे ० भागो । अवद्वि० जह० एस ०, उक्क० सत्तढ समया । इत्थि०वुंस० भुज० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अप्प० जह० एस ०, उक्क० तेत्तीस सागरो० देणाणि । हस्स - रइ - अरइ - सोग० भुज ० - अप्प ० जह० एस ०, उक्क० तो० । एवं सत्तमाए पुढवीए । १३८ सम्यग्दृष्टिके भी बदलता रहता है, इसलिए इनके अल्पतर और भुजगारपदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होनेसे उक्त कालप्रमाण कहा है। इन छह नोकपायोंका अवस्थितपद् उपशमश्रेणिमें भी सम्भव है, इसलिए इसका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । ० $ २८६. देशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वकी भुजगारविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अल्पतरविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है । अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है अथवा छह आवलि है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । तथा अवस्थितविभक्तिका भी उत्कृष्ट काल संख्यात समय ही कहना चाहिए । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी भुजगारविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अल्पतरविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है । अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अवस्थितविभक्तिका भङ्ग श्रोघके समान है । बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी भुजगार और अल्पतरविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी भुजगारविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अल्पतरविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है । हास्य, रति, अरति और शोककी भुजगार और अल्पतरविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए । विशेषार्थ – यहाँ सब प्रकृतियोंके सम्भव पदोंका काल को देखकर घटित कर लेना चाहिए। मात्र अल्पतरविभक्तिके उत्कृष्ट कालमें जहाँ विशेषता है उसे और उपशमश्रेणिके कारण अवस्थित पदके कालमें जो विशेषता आती है वह यहां सम्भव न होनेसे उसे अलग से घटित कर जान लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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