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________________ amanawwaminimirrNirwain जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ सम्म०-सम्मामि०-अर्णताणु०चउक्क०-इत्थि०-णस० अप्प० कस्स ? अण्णद० । बारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछ. तिण्णि वि पदाणि कस्स ? अण्णद० । चउणोक० भुज०-अप्प. कस्स ? अण्णद० । एवं जाव अणाहारए ति । सामित्तं गदं । २८८. कालाणु० दुविहो णिa--ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०अणंताणु० चउकाणं भुज० विहत्ती केवचिरं ? जहएणेण एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । अप्प०विह० जह० एगस०, उक्क० वेछावहि. सागरोवमाणि सादिरेयाणि । अवहि. जह• एगस०, उक्क० संखेज्जा समया। गवरि मिच्छ० उक्क. छावलियाओ। अणंताणु०चउक० अवत्त० जहण्णुक. एगस० । सम्म०सम्मामि० भुज० जहण्णुक्क० अंतोमु० । अप्प० जह० अंतोमु०, उक्क वेलावहिसागरो० सादिरेयागि पलिदो० असंखे०भागेण । अवत० जहण्णुक्क० एगस । अवहि. जह० एगस०, उक. छावलियाओ। बारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछ० भुज०अप्प० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । अवहि० जह० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया अंतोमुहुत्तं वा उवसमसेटिं पडुच्च । इथि०-णस० भुज० जह. अल्पतरविभक्ति किसके होती है ? अन्यतरके होती है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी अल्पतरविभक्ति किसके होती है ? अन्यतरके होती है। बारह कवाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्सा के तीनों पद किसके होते हैं ? अन्यतरके होते हैं। चार नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्ति किसके होती है ? अन्यतरके होती है। इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ। $२८८. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी भुजगारविभक्तिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अल्पतरविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक दो छयासठ सागरप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्तिका उत्कृष्ट काल छह श्रावलि है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगारविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूत है। अल्पतर विभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यका असंख्यातवां भाग अधिक दो छयासठ सागर है। अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह आवलि है । बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी भुजगार और अल्पतर विभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय अथवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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