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________________ गा० १२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए भुजगारे सामित्तं १३५ अण्णद० सम्माइद्विस्स । अवद्वि० कस्स ? अण्ण० सासणसम्माइद्विस्स | अध्य० कस्स ? अण्ण० सम्माइडि० मिच्छाइ हिस्स वा । अणंताणु० चउक्कस्स मिच्छत्तभंगो । वरि अव०ि कस्स ? अण्ण० मिच्छाइहिस्स । अवत्त० कस्स ? अण्णद० विसंजोइय पुणो संजुत्त पढमसमए वट्टमाणयस्स । बारसक० -भय-दुगुंछ० भुज ०अप्प ० - अवद्वि० कस्स १ अण्ण० सम्माइडि० मिच्छाइ द्वि० । इत्थि० णवुंस० भुज०विहत्ति ० कस्स १ अण्णद० मिच्छाइ हिस्स । अप्प कस्स १ अण्णद० सम्माइडि मिच्छाद्वि० वा । हस्स - रदि - अरदि- सोगाणं भुज० - अप्पद० कस्स ? अण्ण० सम्मा० मिच्छाइहिस्स वा । एदेसिं छण्णं पि लोकसायाणं अवद्वि० कस्स १ अण्णद० चारितमोहउवसामयस्स सव्वुवसामणाए वहमाण यस्स । पुरिस० भुज० - अप्प ० कस्स १ अण्णंद ० सम्माइडि० मिच्छाइहिस्स वा । अवद्वि० कस्स ! अण्णद० सम्माइटिस्स । एवं सव्वरइय--तिरिक्ख--पंचिदियतिरिक्खतिय- मणुसतिय देवगइदेवा भवणादि जाव उवरिमगेवज्जाति । वरि छण्णोकसायाणमवद्विदविहत्ती मणुसतियवदिरित्तमग्गणासु णत्थि । पंचिदियतिरिक्ख अपज्ज० - मणुसअपज्ज० मिच्छ० - सोलसक० -भय- दुर्गुछ० भुज०अप्प ० - अवद्वि० कस्स ! अण्णद० सम्म० सम्मामि० अप्प ० कस्स० अण्णद० । सत्तणोक० भुज० - अप्प ० कस्स १ अण्ण० । अणुद्दिसादि जाव सव्वद्वा तिमिच्छ० 1 और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार और अवक्तव्यविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होती है । श्रवस्थितविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सासादनसम्यग्दृष्टिके होती है । अल्पतरविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टिके होती है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग मिध्यात्व के समान है । इतनी विशेषता है कि अवस्थितविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर मिध्यादृष्टिके होती है । अवक्तव्यविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर विसंयोजना करनेके बाद पुनः संयुक्त होनेके प्रथम समय में विद्यमान जीवके होती है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होती है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी भुजगारविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर मिध्यादृष्टि होती है । अल्पतरविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिध्यादृष्टिके होती है । हास्य, रति, अरति और शोककी भुजगार और अल्पतरविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिध्यादृष्टिके होती है । इन छहों नोकषयोंकी अवस्थितविभक्ति किसके होती है ? सर्वोपशामनाके साथ विद्यमान चारित्रमोहनीयकी उपशामना करनेवाले अन्यतर जीवके होती है । पुरुषवेदकी भुजगार और अल्पतरविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिध्यादृष्टि होती है । अवस्थितविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होती है । इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक, मनुष्यत्रिक, देवगतिमें सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर उपरिम प्रवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि छह नोकषायों की अवस्थितविभक्ति मनुष्यत्रिकके सिवा अन्य मार्गणाओं में नहीं है । पञ्च न्द्रिय तिश्चर्यं अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीवों में मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार, seerat it aftथतविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टिके होती है । अल्पतरविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर के होती है। सात नोकषायोंकी भुगजार और T Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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