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________________ १३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ सव्वमणुस्स-देव-भवणादि जाव उवरिमगेवजा त्ति । णवरि मणुसतियवदिरित्तेसु इत्थि-णवंस-हस्स-रदि-अरदि-सोगाणमवहिदं णत्थि। अण्णं च पंचिं०तिरिक्खअपज्ज०-मणुसअपज्ज० मिच्छत्त-सोलसक०-भय-दुगुंछ. अत्थि भुज० अप्प० अवहि । सत्तणोकसायाणमत्थि भुज० अप्प० । सम्मत्त०-सम्मामि० अस्थि अप्पदरविहत्ती । अणुदिसादि जाव सव्वदृसिद्धि ति मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-अणंताणु० चउक्क०इत्थि-णवूस० अत्थि अप्पदरविहत्ती । णवरि सम्म०-सम्मामि० भुजगारो वि दीसइ उवसमसेढीए कालं कादूण तत्थुप्पण्णउवसमसम्माइहिम्मि ति तमेत्थ ण विवक्खियं, तदविवक्रवाए कारणं जाणिय वत्तव्वं । बारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछ• अत्थि भुज० अप्प० अवहि । हस्स-रइ-अरइ-सोगागमत्थि भुज० अप्प०विहत्तिओ, उवसमसेढीदो अण्णत्थ एदेसिमवहिदपदाभावादो । एवं जाव अणाहारि ति । समुक्त्तिण, गदा । २८७. सामित्ताणुगमेण दुविहो णिद्दे सो--ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण मिच्छ० भुज०विहत्ती कस्स ? अण्णद० मिच्छाइद्विस्स । अवहि० कस्स ? अण्णद० मिच्छाइहिस्स वा सासणसम्माइहिस्स वा। अप्प. कस्स ? अण्णद० सम्माइहिस्स वा मिच्छाइहिस्स वा। सम्म०-सम्मामि० भुज०-अवत्त० कस्स ? प्रैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिकको छोड़कर शेषमें स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी अवस्थितविभक्ति नहीं है । और भीपञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्ति है। सात नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्ति है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतरविभक्ति है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी अल्पतरविभक्ति है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगारविभक्ति भी दिखलाई देती है जो उपशमश्रेणिमें मरकर वहाँ उत्पन्न हुए उपशमसम्यग्दृष्टिके होती है परन्तु उसकी यहाँ विवक्षा नहीं है। उसकी विवक्षा न होनेका कारण जानकर कहना चाहिए। बारह कषाय, पुरुषवेद. भय और जगप्साकी भजगार. अल्पतर और अवस्थितविभक्ति है। हास्य, रति, अरति और शोककी भुजगार और अल्पतरविभक्ति है, क्योंकि उपशमश्रेणिके सिवा अन्यत्र इसका अवस्थितपद नहीं पाया जाता। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। इस प्रकार समुत्कीर्तना समाप्त हुई। ६२८७. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्वकी भुजगारविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है। अवस्थितविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टिके होती है। अल्पतरविभक्ति किससे होती है। अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टिके होती है। सम्यक्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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