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حجر مهمی در سر می
میعی بی بی بی کی جو بیع عیب عجمی کی بی بی بی بی بی بی بی کی صحیح
جرجرج جرحی مجیح
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ ॐ कोहे जहष्णपदे ससतकम्म विसेसाहिय । ॐ मायाए जहण्णपदेससंतकम्म विसेसाहियं । 8 लोभे जहणणपदेससंतकम्म विसेसाहिय।
$ २७०. एदाणि मुत्ताणि सगंतोविरवत्तपयडिविसेसपच्चयाणि सुगमाणि त्ति ण वक्रवाणायरो कीरदि।
ॐ मिच्छत्त जहणणपदे ससतकम्ममस खेज्जगुणं ।
$ २७१. एत्थ चोदओ भणइ-जहा तुम्हेहि पुविल्लमणंताणुबंधीणं जहण्णसामित्तं परूविदं तहा मिच्छतादो तेसि जहण्णपदेससंतकम्मेणासंखेज्जगुणेण होदव्वं, मिच्छत्तस्स वेछावडीओ भमादियसम्मत्तादो परिवडिय एइदिएसुप्पण्णपढमसमए जहण्णसामित्तदंसणादो तेसिमण्णहा सामित्तविहाणादो च । ण च मिच्छत्तजहण्णसामिणा वि वेछावहिसागरोवमाणि ण हिंडिदाणि ति वोत जुत्तं, अण्णहा तस्स जहण्णभावाणुक्वत्तीदो तदपरिब्भमणे कारणाणुवलंभादो च । एदम्हादो उबरिमअपञ्चक्रवाणमाणजहण्णपदेससंतकम्मस्स असंखेज्जगुणत्तण्णहाणुववत्तीए च तस्सिद्धीदो। ण च अधापवत्तभागहारादो वेछावहिसागरोवमभंतरणाणागुणहाणिसलागाणमण्णोण्णब्भत्थ
* उससे अनन्तानुबन्धी क्रोध जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। * उससे अनन्तानुबन्धी मायामें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। * उससे अनन्तानुबन्धी लोभमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
$ २७०. उत्तरोत्तर विशेष अधिक होनेका कारण प्रकृतिविशेष होना यह बात इन सूत्रोंमें ही गर्भित होनेसे ये सुगम हैं, इसलिए इनका व्याख्यान नहीं करते हैं।
* उससे मिथ्यात्वमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है।
६ २७१. शंका-यहाँ पर प्रश्न करनेवाला कहता है कि जिस प्रकार तुमने पहले अनन्तानुबन्धियोंका जघन्य स्वामित्व कहा है उसी प्रकार मिथ्यात्वसे उनका जघन्य प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा होना चाहिए, क्योंकि सम्यक्त्वके साथ दो छयासठ सागर काल तक परिभ्रमण करके और मिथ्यात्वमें गिर कर एकेन्द्रियों में उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें मिथ्यात्वका जघन्य स्वामित्व देखा जाता है और अनन्तानुबन्धियोंका इससे अन्यथा प्रकारसे जघन्य स्वामित्वका विधान किया है। यदि कहा जाय मिथ्यात्वका जघन्य स्वामी भी दो छयासठ सागर काल तक परिभ्रमण नहीं करता है सो उसका ऐसा कहना युक्त नहीं है, क्योंकि ऐसा नहीं मानने पर मिथ्यात्वका जघन्यपना नहीं बन सकता है, दूसरे दो छयासठ सागरके भीतर परिभ्रमण नहीं करनेका कारण उपलब्ध नहीं होता। इससे तथा आगे जो अप्रत्याख्यान मानका जघन्य प्रदेशसत्कर्म असंख्यतगुणा कहा है वह अन्यथा बन नहीं सकता इससे भी उक्त कथनकी सिद्धि होती है। कोई कहे कि उत्कर्षणभागहारके द्वारा उत्पन्न की गई दो छयासठ सागर कालके भीतर जो नाना गुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि है वह अधःप्रवृत्तभागहारसे
१. ता०प्रतो '-पच्छयाणि' इति पाठः ।
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