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________________ गा० २२] . उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा ११६ * कोहे जहण्णपदेसस तकम्मं विसेसाहियं । ६. २४७. ण एत्य किं चि वत्तव्यमस्थि, पयडिविसेसमेत्तस्स कारणत्तादो। * मायाए जहएणपदेससंतकम्म विसेसाहियं । ६२४८. सुगममेदं, अणंतरपरूविदकारणत्तादो । ॐ लोभे जहएणपदेससंतकम्म विसेसाहिय। ३ २४६, एत्थ पञ्चओ सुगमो। * पञ्चक्खाणमाणे जहएणपदेससंतकम्म विसेसाहियं । २५०. सुगममत्र कारणं, स्वभावमात्रानुबन्धित्वात् । * कोहे जहण्णपदेससंतकम्म विसेसाहिय । ६ २५१. ण एत्थ वत्तव्यमस्थि । कुदो' ? विस्ससादो। केत्रियमेतो विसेसो ? आवलि. असंखे०भागपडिभागियपयडिविसेसमेत्तो। * मायाए जहएणपदे ससतकम्म विसेसाहिय । $ २५२. एत्थ कारणमणंतरपरूविदत्तादो सुगमं । * उससे अप्रत्याख्यात क्रोधमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । $ २४७. यहाँपर कुछ भी वक्तव्य नहीं है, क्योंकि प्रकृतिविशेष मात्र ही विशेष अधिक होनेका कारण है। * उससे अप्रत्याख्यान मायामें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ २४८. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि कारणका अनन्तर पूर्व कथन कर आये हैं। * उससे अप्रत्याख्यान लोभमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ २४६. यहाँ पर कारणका कथन सुगम है। * उससे प्रत्याख्यान मानमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । ६ २५०. यहाँ पर कारण सुगम है, क्योंकि वह स्वभावमात्रका अनुबन्धी है। * उससे प्रत्याख्यान क्रोधमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ २५१. यहाँ पर कुछ वक्तव्य नहीं है, क्योंकि प्रत्याख्यान क्रोधमें प्रदेशसत्कर्म स्वभावसे अधिक है। विशेषका प्रमाण कितना है ? प्रत्याख्यानमानके जघन्य द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना इस प्रकृतिमें विशेषका प्रमाण है। * उससे प्रत्याख्यान मायामें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । ६२५२ यहाँ पर कारण सुगम है, क्योंकि उसका अनन्तर पूर्व कथन कर आये हैं। 1. भा०प्रतौ 'विसेसाहियं । कुदो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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