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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* लोभे जहणपद ससंतकम्मं विसेसाहियौं ।
९ २५३. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । एदम्हादो चेव रागाइअ विज्जीसंघुत्तिण जिणवरवयणादो | ण च तारिसे आरिसकारएसु चप्पलस्स संभवो, विरोहादो |
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* इत्थवेद जहण पदे सस तकम्म मांतगुणं
$ २५४. कथं सम्मत्तपाहम्मेण बंधविरहिदसरूवत्तादो आएण विणा तेत्तीस - सागरो मेसु गलिदावसिद्वस्सेदस्स पुव्विल्लादो तब्बिवरीदसरूवादो अनंतगुणसमिदि णासंकणिज्ज, देसघाइत्तेण सुलहपरिणामिकारणस्सेदस्स तदो तप्पडिणीयसहावादो अनंतगुणत्तस्स नाइयत्तादो ।
[ पदेसविहत्ती ५
*
सयवेद जहण पद सस तकम्मं संखेज्जगुणं ।
$ २५५. दोन्हमेदासि पयडीणं पुव्वुत्त कालब्भंतरे सरिसीसु वि गुणहाणीसु गलिदास बंधगद्धावसेण पुव्विल्लजहण्णदव्वादो एदस्स संखेज्जगुणत्तं ण विरुज्झदे । से सुगमं ।
* पुरिसवेद जहण्णपदे सस तकम्म 'मस खेज्जगुणं ।
* उससे प्रत्याख्यान लोभमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
$ २५३. ये सूत्र सुगम हैं, क्योंकि रागादि अविद्यासंघसे उत्तीर्ण हुए जिनवर के ये वचन हैं। आर्षकर्ता जिनवरोंके उस प्रकार होनेपर उनमें चपलता सम्भव नहीं है, क्योंकि उनके ऐसा होने में विरोध आता है ।
* उससे स्त्रीवेदमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म अनन्तगुणा है ।
९ २५४. शंका -- एक तो सम्यक्त्वकी प्रमुखतासे बंधनेवाली प्रकृतियों से यह विरुद्धस्वभाववाली हैं। दूसरे आय के बिना तेतीस सागर कालके भीतर गलकर यह अवशिष्ट रहती है, इसलिए भी यह पूर्वोक्त प्रकृतिकी अपेक्षा उससे विपरीत स्वभाववाली है, अतएव यह प्रत्याख्यान लोभसे अनन्तगुणी कैसे हो सकती है ?
समाधान- ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि देशघाति होनेसे तथा सुलभ परिणाम कारक यह प्रकृति होनेसे यह प्रत्याख्यान लोभसे प्रत्यनीक स्वभाववाली है, अतः इसके द्रव्यका अनन्तगुणा होना न्यायप्राप्त है ।
* उससे नपुंसकवेदमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म संख्यातगुणा है ।
$ २५५ इन दोनों ही प्रकृतियोंकी पूर्वोक्त कालके भीतर समान गुणहानियोंका गलन होता है तो भी बन्धक कालवश पूर्वोक्त प्रकृतिके जघन्य द्रव्यसे इसका द्रव्य संख्यातगुण होता है इसमें कोई विरोध नहीं है । शेष कथन सुगम है ।
* उससे पुरुषवेदमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है ।
१. ताप्रतौ 'रागाइअव [वि] जा-', श्रा०प्रतौ 'रागाइ श्रवज्जा-' इति पाठः ।
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