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गा०२२]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूपणा सुगमा ।
* सम्मामिच्छत्ते जहण्णपदे ससतकम्ममस खेज्जगुण । $ २४०. सुगममेदं सुत्तं, ओघादो अविसिहकारणत्तादो। 8 अणंताणुबंधिमाणे जहएणपदेससंतकम्ममसखेजगुणं ।
३ २४१. एत्य गुणगारो तप्पाओग्गपलिदोवमासंखेज्जभागमेत्तो। कुदो १ गुणसेढीदरगोवुच्छाकयविसेसादो चरिमफालिविसेसावलंबणादो च सेसोवट्टणादिविण्णासो अवहारिय पुब्बावराणं सिस्साणं सुगमो।
* कोहे जहएणपदेससंतकम्म विसेसाहिय । २४२. पयडिविसंसादो। ॐ मायाए जहएणपदेससंतकम्म विसेसाहिय । $ २४३. विस्ससादो। * लोभे जहएणपदेससंतकम्म विसेसाहियं ।। $ २४४. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि। बझकारणणिरवेक्खो वत्थुपरिणामो।
* मिच्छत्ते जहएणपदे ससतकम्ममस खेज्जगुणं । अर्थ सरल है।
* उससे सम्यग्मिथ्यात्वमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है ।
२४०. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि अोघप्ररूपणाके समय जो इसका कारण कहा है उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है। दोनों जगह कारण एक समान है।
* उससे अनन्तानुबन्धी मानमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है ।
६२४१. यहाँ गुणकारका प्रमाण तद्योग्य पल्यका असंख्यातवाँ भाग है , क्योकि यहाँ गुणश्रेणि और उनसे भिन्न गोच्छाओंके कारण तथा अन्तिम फालिविशेषके कारण विशेषता आजाती है। आगे पीछेका विचार करके शेष अपवर्तन आदिका विन्यास सब शिष्योंको सुगम है।
* उससे अनन्तानबन्धी क्रोधमें प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । ६ २४२. इसका कारण प्रकृतिविशेष है। * उससे अनन्तानुबन्धी मायामें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। ६ २४३. क्योंकि ऐसा स्वभाव है। * उससे अनन्तानुबन्धी लोभमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
२४४. ये सूत्र सुगम हैं, क्योंकि यहाँ विशेषाधिकका बाह्य कारण नहीं है, वस्तुका परिणमन ही ऐसा है।
* उससे मिथ्यात्वमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है।
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