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गा०२२]
उत्तरपय डिपदेस वित्तीए अप्पा बहुअपरूवणा
काऊण फलाभावेण वेच्छावडीओ अपरिब्भमिय तदो कमेण पुव्त्रकोडाउअमणुस्सभवे दीदृद्धं संजमगुणसेदिणिज्जरं काऊण खत्रणाए अन्भुद्विदजीवेण चरिमडिदिखंडए चरमसमय अणिल्लेविदे छण्णोकसायाणं जहण्णसामित्तविहाणादो । एत्थ गुणगारो कणभागहारगुणिदचरिमफालिपदुप्पण्णवेद्यावद्धि' सागरोदमणाणागुणहाणि सलागाणमण्णोष्णव्यत्थरासी पुच्चिन्लगु णसेडिगोच्छागमणहतप्पा ओग्गपलिदो० असंखे०भागमेत्तरुवट्टिदो । कुदो ? वेळा हिसागरोत्रमाणमपरिव्यमणादो । सयलसमत्थाए चरमफालीए पत्तसामित्तभावादो च हेल्लिरासिस्स तव्विवरीय सरूवत्तादो च ।
* रदीए जहण्णपदेस संतकम्मं विसेसाहियं ।
९ २३३. एदेसिं सरिससामियते वि पयडिविसेसेण विसेसाहियत्तमेत्य दवं । सुगमं ।
* सोगे जहणपदेससंतकम्मं संखेज्जगुणं ।
$ २३४. कुदो १ पुव्विल्लबंधगद्धादो संपहियबंधगद्ध । ए संखेज्जगुणत्तादो ।
* मरदीए जहणपदेस संतकम्मं विसेसाहियं । २३५. कुदो ? पयडिविसेसादो ।
* दुगु छाए जहणपदेस संतकम्मं विसेसाहियौं ।
कर्मप्रदेशोंकी निर्जरा की । यथा विशेष लाभ न होनेसे दो छ्यासठ सागर काल तक परिभ्रमण नहीं किया । तदनन्तर क्रमसे एक पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्य भवमें दीर्घ काल तक संयमको पालकर और गुणश्रेणि निर्जरा करके जब यह जीव क्षपणाके लिये उद्यत होता है तब अन्तिम स्थितिकruses पतन होनेके अन्तिम समयमें छह नोकषायोंका जघन्य स्वामित्व प्राप्त होता है । यहाँ पर गुणकारका प्रमाण उत्कर्षणभागहार गुणित अन्तिम फालि प्रत्युत्पन्न दो छयासठ सागरकी नानागुणहानियोंकी अन्योन्याभ्यस्तराशिमें पहलेकी गुणश्रेणिगोपुच्छाओं को लानेके लिए स्थापित किये गये तत्प्रयोग्य पल्यके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना है, क्योंकि दो छयासठ सागर कालके भीतर परिभ्रमण नहीं कराया हैं और पूरी तरहसे समर्थ अन्तिम फालि में स्वामित्वकी प्राप्ति हुई है । तथा पिछली राशि इससे विपरीत स्वरूपवाली हैं ।
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* उससे रतिमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
$ २३३. इन दोनोंका स्वामी समान है तो भी प्रकृतिविशेषके कारण पूर्व प्रकृति से इस प्रकृतिमें विशेष अधिक द्रव्य जानना चाहिये । शेष कथन सुगम है ।
* उससे शोकमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म संख्यातगुणा है ।
$ २३४. क्योंकि पूर्व प्रकृतिके बन्धकालसे इस प्रकृतिका बन्धकाल संख्यातगुणा है ।
* उससे अरतिमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
$ २३५. इसका कारण प्रकृतिविशेष है ।
* उससे जुगुप्सामें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
१.
प्रतौ 'पप्पण्णा बेावद्वि-' इति पाठः ।
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