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जयवलास हिदे कसा पाहुडे
[ पदेसविहती ५ कुदो ९ बंधाभावे सयवेदस्सेव तिसु पलिदोन मेसु इन्थिवेदगोबुच्छाणं गलणाभावादो । दो चेव सामित्त 'तिपलिदोवमिसु णो उत्रवण्णो' इदि वृत्तं, वेछावहिसागरोवमेसु व तत्थुवादे' पओजणाभावादो | एत्थ गुणगारो तिपलिदोवमव्यंतरणाणागुणहासिला गाणमण्णोष्णन्भत्थरासी । दोन्हं पि गुणसेढीओ सरिसीओ ति पुध हविय पुणो णसय वेदगोबुच्छं तत्तो असंखे० गुणइत्थिवेदगोबुच्छादो अवणिय द्वविदे जं से सं सगअसंखेज्जभागमेत्तमहियदव्वं तेण विसेसाहियं ति वृत्तं होदि । एदं विसेसाहियवयणं णावयं, जहा सव्वत्थ गुणसेढिविण्णासो परिणामाणुसारिओ चेव ण दव्वानुसारि ति । अण्णा पयददव्वस्स पुच्चिल्लदव्वादो असंखे० गुणत्तं मोत्तूण विसेसाहियभावाणुववत्तदो ।
* हस्से जहणणपदेससंतकम्ममसंखेज्जगुणं ।
९ २३२. कुदो १ अभवसिद्धियपाओग्गजहण्णसंतकम्मेण तसेसु आगंतूण बहुए हि संजमासं'जम-संजमपरियट्टणवारेहि चउहि कसायडवसमणवारेहि य बहुकम्मपदेसणिज्जरं
शंका- ऐसा क्यों होता है ?
समाधान- -बन्धके अभाव में नपुंसकवेदके समान तीन पल्य कालके भीतर स्त्रीवेदकी गोपुच्छा नहीं गलती हैं । अर्थात् जिसके नपुंसक वेदका जघन्य द्रव्य प्राप्त होता है वह पहले जिस प्रकार उत्तम भोगमूमिमें तीन पल्य काल तक नपुंसकवेदकी गोपुच्छाएं गला श्राता है उस प्रकार स्त्रीवेदके जघन्य द्रव्यवालेको पहले यह क्रिया नहीं करनी पड़ती है, इसलिये इसके तीन पल्य कालके भीतर गलनेवाली गोपुच्छाएं बच जाती हैं और इसीलिये स्वामित्व सूत्र में स्त्रीवेदके जघन्य द्रव्यको प्राप्त करनेवाला 'तीन पल्यकी आयुवालों में नहीं उत्पन्न होता' यह कहा है। क्योंकि इसे दो छयासठ सागर काल तक सम्यग्दृष्टियों में परिभ्रमण कराना है। अब इस कालके भीतर तीन पल्यकी आयुवालोंमें भी उत्पन्न कराया जाता है तो कोई विशेष प्रयोजन नहीं सिद्ध होता ।
तीन पल्यके भीतर नानागुणहानि शलाकाओं की जो अन्योन्याभ्यस्त राशि प्राप्त हो वह यहाँ गुणकारका प्रमाण है। दोनोंकी गुणश्रेणियाँ समान हैं, अतः उन्हें अलग स्थापित करो । अनन्तर नपुंसक वेदकी गोपुच्छाओंसे असंख्यातगुणी स्त्रीवेदकी गोपुच्छाओं में से नपुंसक वेद की गोपुच्छाओं को घटा कर स्थापित करने पर जो अपनेसे असंख्यातवां भाग अधिक द्रव्य शेष रहता है उतना स्त्रीवेदका जघन्य द्रव्य विशेष अधिक है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । सूत्रमें जो यह 'विशेषाधिक' वचन है सो वह ज्ञापक है जिससे यह ज्ञापित होता है कि गुणश्रेणिका विन्यास सब जगह परिणामों के अनुसार होता है द्रव्यके अनुसार नहीं होता । यदि ऐसा न माना जाय तो प्रकृत द्रव्य पिछले द्रव्यसे असंख्यातगुणा प्राप्त होता है उसे छोड़कर विशेषाधिकता नहीं बन सकती है ।
* उससे हास्यमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है ।
$ २३२. क्योंकि अभव्योंके योग्य जघन्य सत्कर्मके साथ सोंमें आया और वहाँ अनेकबार संयमासंयम और संयमकी पलटन करते हुए तथा चार बार कषायोंकी उपशमना कर बहुत
१. श्र०प्रतौ ' - मेसु तस्थुनबादे' इति पाठः ।
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