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شرحی ترمیمی محرمی سیمرغیجماعی عجرم میخی بر جریہ
१०२.
जयधवलासहिदे कसायपारे [पदेसविहत्ती ५ योवयरं ति वुत्तं होदि । कुदो एदस्स थोवतं ? ओकडू करणभागहारगुणिदगुणसंकमुक्कस्सभागहारपदुप्पण्णाए वेछावहिसागरोवमणाणागुणहाणिसलागाणमण्णोण्णब्भत्थरासीए दीहुव्वेलणकालभंतरणाणागुणहाणिसलागाणमण्णोण्णभत्थरासिणा चरिमफालिआयामेण च गुणिदाए ओवहिददिवडगुणहाणिमेतेई दियसमयपपदपमाणत्तादो। एदं च दव्वं उवरिमपयडिपदेसेहितो थोवयरत्तस्स गायसिद्धत्तादो। होतं वि सम्वत्थोवमसंखेज्जसययपबद्धपमाणं ति घेत्तवं, हेहिमासेसभागहारकलावादो समयपबद्धगुणगारभूददिवडगुणहाणीए असंखेज्जगुणत्तादो । समयपबदगुणगारकारणो जहण्णदंडओ भणिहिदि त्ति पइज्जं काऊण एदस्स मूलपदस्स थोवत्ते कारणमभणंतस्स मुत्तयारस्स पुवावरविरोहदोसो ति णासंकणिज, थोवादो एदम्हादो अण्णेसिं बहुत्तकारणपरूवणाए सुत्तयारेण पइण्णाए कदत्तादो। मुगम वा एत्थ कारणमिदि तदपरूवणमाइरियभडारयस्स ।
* सम्मामिच्छत्ते जहएणपदेससंतकम्ममसंखेजगुणं ।
६२१०. कुदो ? सम्मत्तस्स पमाणेगेगहिदीहिंतो सम्मामिच्छत्तपमाणेगेगहिदीणमसंखेजगुणत्तवलंभादो । कुदो उधयत्थ भज्ज-भागहाराणं सरिसत्ते संते सम्मत्त
समाधान-अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारका गुणसंक्रम भागहारके साथ गुणा कर जो लब्ध आवे उससे उत्पन्न हुई जो दो छयासठ सागरोंकी नानागुणहानि शलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्तराशि उसे दीर्घ उद्वेलन कालके भीतर नानागुणहानिशलाकाओंकी अन्योम्याभ्यस्तराशिसे
और अन्तिम फालिके आयामसे गुणित करने पर जो लब्ध आवे उसका डेढ़ गुणहानिमात्र एकेन्द्रियोंके समयप्रबद्धोंमें भाग देने पर इसका प्रमाण आता है और यह द्रव्य उपरिम प्रकृतियोंके प्रदेशोंसे स्तोकतर है यह न्यायसिद्ध है। यह सबसे स्तोक होता हुआ भी असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण है ऐसा यहाँ पर ग्रहण करना चाहिए. क्योंकि नीचेके समस्त भागहारकलापसे समयप्रबद्धकी गुणकारभूत डेढ़ गुणहानि असंख्यातगुणी है।
शंका--समयप्रबद्धके गुणकारके कारणके साथ जघन्य दण्डक कहेंगे ऐसी प्रतिज्ञा करके इस मूल पदके स्तोकपनेके कारणको नहीं कहनेवाले सूत्रकार पूर्वापर विरोधरूप दोषके भागी ठहरते हैं ?
समाधान--ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सूत्रकारने स्तोकरूप सम्यक्त्वके द्रव्यसे अन्य प्रकृतियोंके द्रव्यके बहुत होनेका कारण कहेंगे ऐसी प्रतिज्ञा की है। अथवा यहाँ पर कारण सुगम है, इसलिए आचार्य भट्टारकने उसका कथन नहीं किया।
* उससे सम्यग्मिथ्यात्वमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है।
६२१०. क्योंकि सम्यक्त्वप्रमाण एक एक स्थितिसे सम्यग्मिथ्यात्वप्रमाण एक एक स्थिति असंख्यातगुणी उपलब्ध होती है।
शंका-- उभयत्र भज्यमान और भागहारराशिके समान होते हुए सम्यक्त्व और १. ताप्रतौ -दिवगुणहाणिमेत्ते (स) इंदिय-' इति पाठः ।
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