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गा० २२]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा २०६. एदस्स जहण्णप्पाबहुअदंडयमूलसुतस्स अवयवत्थपरूवणं कस्सामो । तं जहा-सहिंतो उवरि वुच्चमाणासेसपयडिजहण्णपदेसपडिबद्धपदेहितो योवमप्पयरं सव्वथोवं । किं तं ? सम्मत्ते' जहण्णपदेससंतकम्मं । एत्थ सेसपयडिपडिसेहफलो सम्मत्तणिदेसो । जहण्णणिद्दे सो अजहण्णादिवियप्पणिवारणफलो । हिदि-अणुभागादिवुदासट्टो पदेसणिद्दे सो। बंधादिविसेसपडिसेहह संतकम्म ति वयणं । खविदकम्मसियलक्खणेणागंतूण णिरदिचारेहि असिधाराचरियाए कम्महिदिमेत्तकालं संचरिय थोवाउएसु असण्णिपंचिंदिरसुववज्जिय देवाउअबंधवसेण देवेसुप्पजिय छप्पज्जत्तिसमागणवावारेण अंतोमुहुत्ते गदे उकस्सअपुव्वकरणादिपरिणामेहि गुणसेढिणिज्जरमुक्कस्सं काऊण उवसमसम्मत्तलब्भपढमसमयप्पहुडि सव्वजहण्णगुणसंकमकालेण सव्वुकस्सगुणसंकमभागहारेण च थोवयरं मिच्छत्तदव्वं सम्मत्तसरूवेण परिणमाविय वेदगसम्मत्तं पडिवज्जिय वेलावहिसागरोवमाणि परिभमिय मिच्छत्तं गंतूण दीहुव्वेल्लणकालेणुव्वेल्लिय सम्मत्तचरिमफालि मिच्छत्तसरूवेण परिणमाविय एगणिसेगं समयकालं धरेयुग हिदजीवस्स य सम्मत्तजहण्णपदेससंतकम्मं सेसपयडिजहण्णपदेसेहितो
६ २०६. जघन्य अल्पबहुत्व दण्डकके मूलरूप इस सूत्रके अवयवोंके अर्थका कथन करते हैं । यथा-सबसे अर्थात् आगे कही जानेवाली सब प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशोंसे सम्बन्ध रखनेवाले प्रदेशोंसे स्तोक अर्थात् अल्पतर सर्वस्तोक कहलाता है। वह सर्वस्तोक क्या है ? सम्यक्त्वमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म । यहाँ सम्यक्त्व पदके निर्देशका फल शेष प्रकृतियोंका प्रतिषेध करना है। 'जघन्य' पदके निर्देश करनेका फल अजघन्य आदि विकल्पोंका निवारण करना है। स्थिति और अनुभाग आदिका निवारण करनेके लिए 'प्रदेश' पदका निर्देश किया है। बन्ध आदि विशेषोंका निषेध करनेके लिए 'सत्कर्म' यह वचन दिया है। जो क्षपितकाशिक विधिसे आकर निरतिचाररूपसे असिधारा चर्याके द्वारा कर्मस्थितिप्रमाण काल तक परिभ्रमण करके पुनः स्तोक आयुवाले असंज्ञी पञ्चन्द्रियोंमें उत्पन्न होकर और देवायुका बन्ध होनेसे देवोंमें उत्पन्न होकर छह पर्याप्तियोंको पूर्ण करने रूप व्यापारके द्वारा अन्तर्मुहूर्त काल जाने पर अपूर्वकरण आदि परिणामोंके द्वारा उत्कृष्ट गुणश्रेणिनिर्जरा करके उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त होनेके प्रथम समयसे लेकर सबसे जघन्य गुणसंक्रम काल और सबसे उत्कृष्ट गुणसंक्रमभागहारके द्वारा मिथ्यात्वके स्तोकतर द्रव्यको सम्यक्त्वरूपसे परिणमा कर अनन्तर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त कर उसके साथ दो छयासठ सागर काल तक परिभ्रमण करके अनन्तर मिथ्यात्वमें जाकर सबसे दीर्घ उद्वेलना कालके द्वारा अन्तमें सम्यक्त्वकी अन्तिम फालिको मिथ्यात्वरूपसे परिणमा कर दो समय कालकी स्थितिवाले एक निषेकको धारण कर स्थित है उसके सम्यक्त्वका जघन्य प्रदेशसत्कर्म शेष प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशोंको देखते हुए स्तोकतर होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-इसका स्तोकपना कैसे है ?
१. ता०प्रतौ किंतु ( तं ) सम्मत्ते' मा प्रतो किंतु सम्मत्ते' इति पाठः। २. ता०प्रती -जहरणपदेहितो' इति पाठः।
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