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________________ rrrrrrrrrival -- १०० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ दंडयस्स पुव्वमेव परूविदत्तादो पारिसेंसियण्णाएण एदस्स अणुत्तसिद्धीदो त्ति १ ण । एस दोसो, मंदबुद्धिसिस्साणुग्गहह तहा परूवणादो । अदो चेव एदस्स वि पइज्जासुत्तस्स सद्दाणुसारिसिस्सस्स पोच्छाहणफलस्स उवण्णासो सहलो, अण्णहा पेक्खापुचयारीणमणादरणीयत्तादो । एदेण सव्वसत्ताणुग्गहकारितं भयवंताण सूचिदं । अहवा जहण्णसामित्तम्मि परूविदअजहण्णहाणवियप्पाणमणंतभेयभिण्णाणं णिरायरणह जहण्णदंडयणिद्दे सो त्ति वत्तव्यं । ___$२०८. तस्स दुविहो णिद्दे सो--ओघेण आदेसेण य । तत्थ आदेसंधुदासहमोघेणे त्ति वयणं । वक्खाणकारयाणमाइरियाणं पोछाहणफलो सकारणो भणिहिदि त्ति सुत्तावयवणिद्देसो, अण्णहा अवलंबणाभावेण छदुमत्थाणं थोवबहुत्तकारणावगमणपरूवणाणं तंतजुत्तिविसयाणमणुववत्तीदो । दिसादरिसणमेत्तं चेदं, सम्मत्तजहण्णपदेससंतकम्मादो सम्मामिच्छत्तजहण्णपदेससंतकम्मबहुत्तमेत्ते चेव उवरिमपदाणं बीजपदभावेण मुत्ते कारणपरूवणादो। एत्थ सह कारणेण वट्टमाणो जहण्णदंडओ ओघेण भणिहिदि त्ति पदसंबंधो कायव्यो । सेसं सुगमं । 8 सव्वत्थोवं सम्मत्त जहण्णपदेससतकम्मं । उत्कृष्ट दण्डकका पहले ही कथन कर आये हैं, इसलिए पारिशेष न्यायके अनुसार बिना कहे ही इसकी सिद्धि हो जाती है ? समाधान ---यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि मन्दबुद्धि शिष्यका अनुग्रह करनेके लिए उस प्रकारसे कथन किया है और इसीसे ही शब्दानुसारी शिष्यकी पृच्छाके फलस्वरूप इस प्रतिज्ञासूत्रका भी उपन्यास सफल है, अन्यथा प्रेक्षापूर्वक व्यवहार करनेवालोंके लिए यह आदरणीय नहीं हो सकता । इससे भगवान् सब जीवोंका अनुग्रह करनेवाले होते हैं यह सूचित होता है। अथवा जघन्य स्वामित्वके समय कहे गये अनन्त भेदोंको लिए हुए अजघन्य स्थानोंके विकल्पोंका निराकरण करनेके लिए सूत्र में 'जघन्य दण्डक' पदका निर्देश करना चाहिए। .......६ २०८. उसका निर्देश दो प्रकारका है—ओघ और आदेश । उनमेंसे आदेश निर्देशका निराकरण करनेके लिए सूत्रमें 'ओघसे' पदका निर्देश किया है। व्याख्यानकारक आचार्यों की पृच्छाके फलस्वरूप 'सकारण कहेंगे' इस सूत्रावयवका निर्देश किया है, अन्यथा अल्पबहुत्वके कारणका जो भी ज्ञान है उसका कथन छद्मस्थोंके बिना अवलम्बनके आगमयुक्ति पुरस्सर है यह नहीं बन सकता। यह सूत्र दिशाका आभासमात्र करता है, क्योंकि सम्यक्त्वके जघन्य प्रदेशसत्कर्मसे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसत्कर्म बहुत है इतने मात्रसे उपरिम पद बीजपदरूपसे सूत्रमें कारणका निरूपण करते हैं । यहाँ पर कारण सहित विद्यमान जघन्य दण्डक ओघसे कहेंगे इस प्रकार पदसम्बन्ध करना चाहिए। शेष कथन सुगम है। ___ * सम्यक्त्वमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म सबसे स्तोक है। 1. प्रा०प्रतौ 'तस्थ भोघेण प्रादेस-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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