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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ महियत्तुवलंभादो । एदं कुदो णव्वदे १ परमाइरियाणमुवएसादो।
* लोभे उक्कस्सपदेससंतकम्म विसेसाहिय । ६ १६३. सुगममेत्य कारणं, अणंतरणिहिद्वत्तादो। * मिच्छत्ते उकास्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
६१६४. जदि वि दोण्हमेदासि पयडीणमेयत्य चेव' गुणिदफम्मंसियणेरइयचरपच्छायदपंचिदियतिरिक्वभवग्गहणमिच्छाइहिनीवे एइंदिएमुप्पण्णपढमसमयसंठिदे . सामित्तं जादं तो वि पयडिविसेसेण विसेसाहियत्तं मिच्छत्तस्स | विरुज्झदे, बज्झकारणादो अब्भंतरकारणस्स बलिहत्तादो ।
ॐ हस्से उकस्सपदेसस तकम्ममणंतगुणं ।
६ १६५. कुदो १ सव्वघाइत्तेण पुवुत्तासेसपयडीणं पदेसपिंडस्स देसघादिहस्सपदेस पेक्खियूगाणंतिमभागतादो। णेदमसिद्धं, भागाभागपरूवणाए तहा साहियत्तादो।
ॐ रदीए उक्कस्सपदेससंतकम्म विसेसाहियं । $ १६६. जइ वि दोण्हमेदासि पयडीणं बंधगद्धाओ सरिसाओ तो वि पयडिशंका--यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान--परम आचार्यों के उपदेशसे जाना जाता है। * उससे अनन्तानुबन्धी लोभमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ १६३. यहाँ कारणका निर्देश सुगम है, क्योंकि उसका अनन्तर निर्देश कर आये हैं। * उससे मिथ्यात्वमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
१६४. यद्यपि अनन्तानुबन्धी लोभ और मिथ्यात्व इन दोनों प्रकृतियोंका गुणित कर्माशिक नारकियोंमें से आकर पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च मिथ्यादृष्टि होनेके बाद एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें स्थित रहते हुए एक ही स्थानमें उत्कृष्ट स्वामित्व प्राप्त हुन्छा है तो भी प्रकृतिविशेष होने के कारण मिथ्यात्वके द्रव्यका विशेष अधिक होना विरोधको नहीं प्राप्त होता, क्योंकि बाह्य कारणकी अपेक्षा आभ्यन्तर कारण बलिष्ठ होता है।
* उससे हास्यमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म अनन्तगुणा है।
६ १६५. क्योंकि पूर्वोक्त अशेष प्रकृतियाँ सर्वघाति हैं। उनका प्रदेशपिण्ड देशघाति हास्य प्रकृतिके प्रदेशपुजकी अपेक्षा अनन्तवें भागप्रमाण है। और यह असिद्ध नहीं है, क्योंकि भागाभागप्ररूपणामें उस प्रकारसे सिद्ध कर आये हैं।
® उससे रतिमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। ६ १६६. यद्यपि इन दोनों प्रकृतियोंका बन्धक काल समान है तो भी प्रकृतिविशेष होनेके १. ताप्रती 'मेवत्थं चेव' इति पाठः।
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