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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा $ १८७. कुदो ? सहावविसेसादो । न हि भावस्वभावाः पर्यनुयोज्याः, अन्यत्रापि तथातिप्रसङ्गात् । विशेषप्रमाणं सुगम, असकृद्विमृष्टत्वात् । ® मायाए उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । $ १८८. सुगममेदं, पयडिविसेसवसेण तहाभावुलंभादो । * बोभे उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहिय । $ १८६, एदं पि सुगम, विस्ससापरिणामस्स तारिसत्तादो । अणंताणुबंधिमाणे उक्कस्सपद ससंतकम्म विसेसाहिय । १६०. पयडिविसेसेण आवलियाएं' असंखे०भागपडिभागिएण । कुदो ? पयडिविसेसादो। * कोहे उकस्सपदेससंतकम्म बिसेसाहियं । $ १६१. सुगममेदं, पयडिविसेसेण तहावहिदत्तादो। * मायाए उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहिय । ६ १९२. विस्ससादो आवलियाए असंखे०भागेण खंडिदघुव्विल्लदव्वमेत्तेण 5 १८७. क्योंकि ऐसा स्वभावविशेष है। और पदार्थों के स्वभाव शंका करने योग्य नहीं होते, क्योंकि अन्यत्र वैसा मानने पर अतिप्रसङ्ग दोष आता है। विशेषका प्रमाण सुगम है, क्योंकि उसका अनेक बार परामर्श कर आये हैं। * उससे प्रत्याख्यान मायामें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। ६ १८८. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि प्रकृतिविशेष होनेके कारण उसरूपसे उसकी उपलब्धि होती है। * उससे प्रत्याख्यान लोभमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । ६ १८६. यह सूत्र भी सुगम है, क्योंकि स्वभावसे इसका इसप्रकारका परिणमन होता है। * उससे अनन्तानुवन्धी मानमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ १६०. कारण कि प्रकृतिविशेष आवलिके असंख्यातवें भागके प्रतिभागरूपसे है, क्योंकि प्रकृतिविशेष है। * उससे अनन्तानुबन्धी क्रोधमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। ६ १६१. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि प्रकृतिविशेष होनेके कारण यह उस प्रकारसे अवस्थित है। * उससे अनन्तानुबन्धी मायामें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ १६२. क्योंकि पूर्वोक्त प्रकृतिके द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना इसमें स्वभावसे अधिक उपलब्ध होता है। १. पा० प्रतौ 'विसेसाहियं । श्रावलियाए' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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