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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ पदेससंतकम्मं । सेसपयडिपडिसेहफलो सम्मतणि सो। अणुकस्सादिवियप्पणिवारणफलो उकस्सपदेससंतकम्मणिद्दे सो। उवरि वुच्चमाणासेसपयडिपदेसुक्कस्ससंचयादो सम्मत्तकस्सपदेससंतकम्मं योवयरं ति वुत्तं होइ । - * सम्मामिच्छत्ते उक्कस्सपदेससंतकम्ममसंखेजगुणं ।
१८१. को गुणगारो ? सम्मत्तगुणसंकमभागहारस्स असंखेज्जदिभागो। तस्स को पडिभागो ? सम्मामिच्छत्तगुणसंकमभागहारपडिभागो। कुदो ? गुणिदकम्मसियलक्खणेणागंतूण सत्तमाए पुढवीए उप्पज्जिय सगाउहिदीए अंतोमुहुत्तावसेसियाए विवरीयभावं गंतूण उपसमसम्पत्तं पडिवज्जिय सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणि सव्वजहण्णगुणसंकमभागहारेणावूरिय सब्बलहुं भिच्छत्तं गंतूणुवट्टिदसमाणे पच्छायद. पंचिंदियतिरिक्खभवग्गहणे एइंदिएसुप्पण्णपढमसमयट्टमाणजीवे सम्मत्तादेमुक्करस. दव्वादो सम्मामिच्छत्तकस्सपदेससंतकम्मस्स गुणसंकमभागहारविसेसादो तहाभावुवलंभादो । भागहारविसेसो च कत्तो गव्वदे ? गुणसंकमपढमसमए मिच्छत्तादो जं सम्मत्ते संकमदि पदेसग्गं तं थोवं । तम्मि चेत्र समए सम्मामिच्छत्ते संकमदि पदेसग्गमसंखेज्जगुणं । पढमसमर सम्मामिच्छत्तसरूवेण संकंतपदेसपिंडादो विदियसमए सम्मत्तसरूवेण संकमंतपदेसग्गमसंखेज्जगुणं । तम्मि चेव समए सम्मामिच्छत्ते संकंतसर्वस्तोक क्या है ? सम्यक्त्वमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म। सूत्रमें 'सम्यक्त्व' पदके निर्देशका फल शेष प्रकृतियोंका प्रतिषेध करना है। 'उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म' पदके निर्देशका फल अनुत्कृष्ट आदि विकल्पोंका निवारण करना है। आगे कहे जानेवाले समस्त प्रकृतियोंके प्रदेशोंके उत्कृष्ट सञ्चयसे सम्यक्त्वका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कम स्तोकतर है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* उससे सम्यग्मिथ्यात्वमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है।
६ १८१. गुणकार क्या है ? सम्यक्त्वके गुणसंक्रमभागहारके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । उसका प्रतिभाग क्या है ? सम्यग्मिथ्यात्वका गुणसंक्रमभागहार प्रतिभाग है, क्योंकि जो जीव गुणितकांशिक विधिसे आकर और सातवीं पृथिवीमें उत्पन्न होकर अपनी आयुस्थितिमें अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर मिथ्यात्वसे विपरीत भावको जाकर और उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त कर सबसे जघन्य गुणसंक्रम भागहारके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वको पूरकर और अतिशीघ्र मिथ्यात्वको प्राप्त कर मर कर पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न हो अनन्तर मर कर एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होकर उसके प्रथम समयमें विद्यमान है उसके सम्यक्त्वके आदेश उत्कृष्ट द्रव्यकी अपेक्षा सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म गुणसंक्रमभागहार विशेषके कारण उस प्रकारका अर्थात् सम्यक्त्वके उत्कृष्ट द्रव्यसे असंख्यातगुणा अधिक पाया जाता है।
शंका-भागहारविशेष किस कारणसे जाना जाता है ?
समाधान-गुणसंक्रमके प्रथम समयमें मिथ्यात्वमेंसे जो प्रदेशसमूह सम्यक्त्वमें संक्रमण को प्राप्त होता है वह स्तोक है। उसी समयमें जो प्रदेशसमूह सम्यग्मिथ्यात्वमें संक्रमणको प्राप्त होता है वह उससे असंख्यातगुणा है। प्रथम समयमें सम्यग्मिथ्यात्वमें संक्रमणको प्राप्त हुए प्रदेशपिण्डसे दूसरे समयमें सम्यक्त्वमें संक्रमणको प्राप्त हुआ प्रदेशपिण्ड असंख्यातगुण है।
ام و میع یه مهیجی
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