________________
गा०२२
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा पदेसग्गमसंखेजगुणं ति एदस्स' अत्यविसेसस्स उवरि मुत्तणिबदस्स दसणादो । अंतोमुहुनगुणसंकमकालभंतरावूरिद सम्मत्तसव्वदव्यसंदोहादो गुणसंकमकालचरिमेगसमयपडिच्छिदसम्मामिच्छत्तपदेसजस्स असंखेज्जगुणतुवलद्धीदो च तत्तो तस्स तहाभावो ण विरुज्झदे।
® अपञ्चक्खाणमाणे उक्कस्सपदेससंतकम्ममसंखेजगुणं ।
१८२. एत्थ कारणं वुच्चदे । तं जहा-सम्मामिच्छत्तं मिच्छत्तसयलदव्वस्स असंखे० भागो, गुणसंकमभागहारेण खंडिदेयखंडमेत्तस्सेव मिच्छत्तदव्वादों सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तसरूवेण परिणमणुवलं भादो। अपञ्चक्खाणमाणो पुण मिच्छत्तसरिसो चेव, पयडिविससस्स अप्पाहणियादो। तदो मिच्छत्तस्स असंखे०भागमेत्तसम्मामिच्छत्तदव्वादो थोरुच एण मिच्छत्तसरिसअपचक्रवाणमाणपदेससंतकम्ममसंखेजगुणं ति ण एत्थ संदेहो । को गुणगारो ? सव्व जहण्णगुणसंकमभागहारो।
* कोहे उकस्सपदेससंतकम्म विसेसाहियं ।
६ १८३. पडिविसेसेण पुचिल्लदव्व आलियाए असंखे०भागेण खंडिदे तत्थेयखंडपमाणेण ।
तथा उसी समयमें सन्यग्मिथ्यात्वमें संक्रमणको प्राप्त हुआ प्रदेशपिण्ड उससे असंख्यातगुणा है इस प्रकार यह अर्थविशेष आगे सूत्र में निबद्ध हुआ देखा जाता है। तथा गुणसंक्रमके अन्तर्मुहूर्तप्रमाण कालके भीतर जो द्रव्यसमूह सम्यक्त्वको मिलता है उससे गुणसंक्रम कालके अन्तिम एक समयमें सम्यग्मिथ्यात्वमें संक्रान्त हुआ प्रदेशपुञ्ज असंख्यातगुणा है, इसलिए संक्रम भागहारके उस प्रकारके होनेमें विरोध नहीं पाता।
* उससे अप्रत्याख्यान मानमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है ।
६ १८२. यहाँ पर कारणका कथन करते हैं। यथा-सम्यग्मिथ्यात्वका द्रव्य मिथ्यात्वके समस्त द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि गुणसंक्रम भागहारका भाग देने पर लब्ध एक भागप्रमाण द्रव्य ही मिथ्यात्वके द्रव्यमें से सम्यक्त्व और सम्यग्मि यात्वरूपसे परिणमन करता हुआ उपलब्ध होता है। परन्तु अप्रत्याख्यान मानका द्रव्य मिथ्यात्वके ही समान है, क्योंकि प्रकृतिविशेषकी प्रधानता नहीं है। इसलिए मिथ्यात्वके असंख्यातवें भागप्रमाण सम्यग्मिथ्यात्वके द्रव्यसे मौटे रूपसे मिथ्यात्वके समान अप्रत्याख्यान मानका प्रदेशसत्कर्म असंख्यातगुणा है इसमें सन्देह नहीं है । गुणकार क्या है ? सबसे जघन्य गुणसंक्रम भागहार गुणकार है ।
* उससे अप्रत्याख्यान क्रोधमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
$ १८३. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है। यहाँ पूर्वोक्त द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है।
1. ता०प्रतौ -मसंखेजगुणं एदस्स' इति पाठः। २. ता०प्रतौ 'गुणसंकमतिकालभंतरापरिद.' इति पाठः । ३. ता०प्रती 'मिछत्तादो दम्वादो' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org