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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा भहियत्तुवलंभादो। तं जहा-पुरिसवेददव्वं मोहणीयसव्वदव्वं पेक्खियूण दसमभागो होदि, मोहसव्वदव्वस्स कसाय-णोकसायाणं समपविभत्तस्स पंचमभागत्तादो कसायगोकसायदव्वेसु पुरिसवेदभागपमाणेण कीरमाणेसु पुध पुध पंचसलागाणमुरलंभादो च । माणसंजलणदव्वं पुण मोहणीयसव्वदव्वं पेक्खियूण अहमभागो, कसायभागस्स संजलणेसु चउदा विहन्जिय हिदत्तादो। तदो मोहसयलदव्वदसमभागभूदपुरिसवेदसव्वसंचयादो तदहमभागमेत्तमाणसंजलणपदेससंचओ चउभागभहिओ त्ति सिद्धं, तम्मि तप्पमाणेण कीरमाणे चउब्भागब्भहियसयलेगसलागुवलंभादो । १७३. एत्थ अव्वुप्पण्णवुप्पायण संदिहिविहिं वत्तइस्सामो। तं जहा-- मोहणीयसयलदव्वपमाणं चालीस ४० । तदद्धमेत्तो कसायभागो एसो २० । णोकसायभागो वि तत्तिओ चेव २०। पुणो णोकसायभागे पंचहि भागे हिदे भागलदमेत्तमेत्तियं पुरिसवेददव्यपमाणमेदं होदि ४ । कसायभागे वि चदुहि भागे हिदे लद्धमत्तं पमाणं संजलणदव्यमेत्तियं होदि ५ । एदं च परिसवेदमागे चउहि भागे हिदे जं भागलद्धं तम्मि तत्थेव पक्वित्ते उप्पज्जदि त्ति तस्स तदो चउम्भागब्भहियत्तहोता है । यथा-पुरुषवेदका सब द्रव्य मोहनीयके सब द्रव्यको देखते हुए दसवें भागप्रमाण है, क्योंकि एक तो मोहनीयके सब द्रव्यको कषाय और नोकषायमें समानरूपसे विभक्त कर देने पर पुरुषवेदका द्रव्य प्रत्येकके पाँचवें भागप्रमाण प्राप्त होता है। दूसरे कषाय और नोकषायके द्रव्यके पुरुषवेदका जो भाग हो तत्प्रमाणरूपसे विभक्त करने पर अलग अलग पाँच शलाकाएं उपलब्ध होती हैं। परन्तु मानसंज्वलनका द्रव्य मोहनीयके सब द्रव्यको देखते हुए उसके आठवें भागप्रमाण है, क्योंकि कषायका द्रव्य संज्वलनोंमें चार भागरूप विभक्त होकर स्थित है। इसलिए मोहनीयके सब द्रव्यके दसवें भागरूप पुरुषवेदके समस्त सञ्चयसे मोहनीयके समस्त द्रव्यके आठवें भागरूप मानसंज्वलनका प्रदेशसञ्चय एक चतुर्थांशप्रमाण अधिक है यह सिद्ध हुआ, क्योंकि इस द्रव्यको पुरुषवेदके द्रव्यके प्रमाणरूपसे करने पर चतुर्थ भाग अधिक एक शलाका उपलब्ध होती है। विशेषार्थ-तात्पर्य यह है कि पहिले मोहनीयके सब द्रव्यको आधा कषायमें और आधा नोकषायमें विभक्त कर दो। उसके बाद कषायके द्रव्यका एक चौथाई मानसंज्वलनको दो और नोकषाय द्रव्यका एक पश्चमांश पुरुषवेदको दो। इस प्रकारसे विभाग करने पर मानसंज्वलनका द्रव्य मोहनीयके समस्त द्रव्यके आठवें भागप्रमाण प्राप्त होता है और पुरुषवेदका द्रव्य मोहनीयके समस्त द्रव्यके दसवें भागप्रमाण प्राप्त होता है, इसलिए यहां पुरुषवेदके द्रव्यसे मानसंज्वलनका द्रव्य एक चौथाई अधिक कहा है। १७३. अब यहाँ पर अव्युत्पन्न जीवोंकी व्युत्पत्ति बढ़ानेके लिए संदृष्टिविधि बतलाते हैं। यथा-मोहनीयके समस्त द्रव्यका प्रमाण ४० है। उसके अर्धभागप्रमाण कषायका द्रव्य यह है २० । नोकषायका भाग भी उतना ही है २० । पुनः नोकषायके भागमें पाँचका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उतना पुरुषवेदका द्रव्य होता है। उसका प्रमाण यह है ४ । कषायके भागमें भी चारका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आता है वह मानसंज्वलनका द्रव्य होता है। उसका प्रमाण यह है ५ । पुनः पुरुषवेदके भागमें चारका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उसे उसीमें मिला देने पर यह मानसंज्वलनका द्रव्य उत्पन्न होता है, इसलिए यह मानसंज्वलनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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