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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा वज्जिय बद्धमणुसाउओ मणुसेसुप्पन्जिय पज्जत्तीओ समाणिय णिरयाउअबंधपुरस्सर पढमसम्मत्तमुप्पाइय दंसणमोहणीयक्खवणं पारभिय कदकरणिज्जो होदण अंतोमुहुत्तमेत्तसम्मत्तगुणसेटिगोवुच्छासु अणंताणुबंधिलोभमावलियाए असंखे० भागेण खंडिय तत्थेगखंडमेत्तेण तत्तो अब्भहियदिवड्डगुणहाणिपमाणं मिच्छत्तसयलदव्वं पयडिविसेसदव्वादो असंखेजगुणहीणगुणसेढिगिजराणिज्जिण्णदव्वमेतेणूणं धरिऊण हिदजीवम्मि गेरइएमुप्पण्णपढमसमए वट्टमाणम्मि सम्मत्तु कस्सपदेससामियम्मि तहाभावुनलंभादो ।
ॐ मिच्छत्ते उक्कस्सपदेससंतकम्म विसेसाहियं ।
३. १६२. केत्तियमेत्तेण १ गिरयादो उव्वट्टिय सम्मत्तमुक्कस्सं करेमाणस्स अंतराले जहाणिसेयसरूवेण गुणसेढिणिजराए च णहदव्यमेत्तेण । तं च केत्तियं ? सगदव्वे पलिदोषमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तभागहारेण खंडिदे तत्थेयखंडमेत्तं । ण च एदं मिच्छत्तुक्कस्सपदेससामियम्मि असिद्धं, चरिमसमयणेरइयम्मि गुणिदकम्मंसियलक्रवणेण समाणिदकम्महिदिचरिमसमए वट्टमाणम्मि अविणहसरूवेण तस्सुवलंभादो ।
® हस्से उक्कस्सपदेससंतकम्ममणंतगुणं ।
१६३. कुदो ? देसघादित्तणेण सुलहपरिणामिकारणत्तादो। ण च अणंतिमउत्पन्न हो और मनुष्यायुका बन्ध कर मनुष्योंमें उत्पन्न हो तथा पर्याप्तियोंको पूर्ण कर नरकायुके बन्धपूर्वक प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न कर तथा दर्शनमोहनीयके क्षयका प्रारम्भ कर कृतकृत्य होकर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण सम्यक्त्वकी गुणश्रेणि गोपुच्छाओंमें, अनन्तानुबन्धी लोभको श्रावलिके असंख्यातवें भागका भाग देकर जो एक भाग लब्ध आवे उससे अधिक डेढ़ गुणहानिप्रमाण मिथ्यात्वके समस्त द्रव्यको प्रकृतिविशेषके द्रव्यसे असंख्यातगुणे हीन गुणश्रेणि निर्जराके द्वारा निर्जीर्ण हुए द्रव्यसे हीन द्रव्यको, धारण कर स्थित है उसके नारकियोंमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंके स्वामीरूपसे विद्यमान रहते हुए उस प्रकारसे प्रदेशसत्कर्म देखा जाता है ।
* उससे मिथ्यात्वमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
$ १६२. कितना अधिक है ? नरकसे निकलकर सम्यक्त्वको उत्कृष्ट करनेवाले जीवके अन्तराल कालमें यथानिषेक क्रमसे और गुणश्रेणिनिर्जरारूपसे जितना द्रव्य नष्ट होता है उतना अधिक है।
शंका-वह कितना है ?
समाधान-अपने द्रव्यमें पल्यके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उतना है ।और यह मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंके स्वामित्व कालमें असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि जो गुणितकमांशिकविधिसे आकर कर्मस्थितिको समाप्त करनेके अन्तिम समयमें नरकपर्यायके अन्तिम समयवाला होता है उसके मिथ्यात्वका समस्त द्रव्य उक्त प्रकारसे नष्ट हुए बिना पाया जाता है।
* उससे हास्यमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म अनन्तगुणा है। ६ १६३. क्योंकि देशघाति होनेसे इसके सञ्चयका कारण सुलभ परिणाम हैं। अनन्तर्षे
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