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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ 8 कोहे उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । $ १५७. सुगम, अणंतरपरूविदकारणत्तादो । ॐ मायाए उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । $ १५८. कुदो १ सहावदो चेय, तहा भावेणावटाणदंसणादो । ॐ लोभे उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । १५६. पहिल्लमुत्तहिदपञ्चक्रवाण० लोभे उक्क० पदेससंतकम्म विसे० एसु मुत्तेसु तिमु वि संबंधणिजं । सेसं मुगमं ।। * अणंताणुबंधिमाणे उक्कस्सपदेसतकम्म विसेसाहियं । * कोधे उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । ॐ मायाए उक्कस्सपदेससंतकम्म विसेसा हेयं । * लोभे उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । १६०. सुगममेदं सुत्तचउद्ययं । * सम्मत्त उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहिय । ६ १६१. कुदो ? गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सत्तमपुढवीदो उव्वट्टिय " दो-तिण्णिभवग्गहणाणि तसकाइएमुप्पज्जिय पुणो समाणिदतसहिदित्तादो एइंदिरमुव * उससे प्रत्याख्यान क्रोधमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ १५७. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि अनन्तर पूर्व कारणका कथन कर आये हैं। ॐ उससे प्रत्याख्यानमायामें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ १५८. क्योंकि स्वभावसे ही उस रूपसे अवस्थान देखा जाता है। * उससे प्रत्याख्यान लोभमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । ६ १५६. पहले सूत्रमें स्थित प्रत्याख्यान पदका 'लोभका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है' यहाँ तकके इन तीनों ही सूत्रोंमें सम्बन्ध कर लेना चाहिए । शेष कथन सुगम है। ® उससे अनन्तानुबन्धी मानमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । ॐ उससे अनन्तानुबन्धी क्रोधमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। * उससे अनन्तानुबन्धी मायामें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । * उससे अनन्तानुबन्धी लोभमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। ६१६०. ये चारों सूत्र सुगम हैं। * उससे सम्यक्त्वमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । ६१६१. क्योंकि जो जीव गुणितकांशिकविधिसे आकर और सातवीं पृथिवीसे निकलकर त्रसकायिकोंमें दो तीन भव धारण कर अनन्तर त्रसस्थितिको समाप्त कर एकेन्द्रियों में -rrrrrrrrrrrrria-MAMINur. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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