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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा
६ १३५. सत्तमाए पुढीए अजंताणुवंधिलोभउकस्सदव्वादो आवलि. असंखे०भागपडिभागेण अब्भहियमिच्छत्तकस्सदव्वपमाणत्तादो । सत्तमपुढवीदो उबष्ट्रिय तसकाइएसु उप्पन्जिय तत्थ तसहिदि समाणिय पुणो एइंदिएमु दो-तिष्णिभवग्गहणागि गमिय मणुस्सेमुववज्जिय तत्थ अंतोमुहुत्तब्भहियअहवस्साणि गमिय सम्मत्तं पडिवजिय मिच्छत्तदव्वे सम्मामिच्छत्तस्सुवरि पक्खित्ते सम्मामिच्छत्तपदेसग्गमुक्कस्सं होदि । ण च एर्द दबमणताणुवंधिलोभदव्वादो विसेसाहियं, सम्मत्तसरूवेण असंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलमेत्तसमयपबद्धाणं गयत्तादो' गुणसेढिणिज्जराए पडिसमयमसंखेगुणं समयपद्धाणं गलिदत्तादो च ? ण, दोहि वि पयारेहि पदव्वस्स अणंताणुबंधिलोभदव्वे आवलियाए असंखे०भागेण खोडदे तत्थ एयखंडमेतमिच्छत्तपयडिविसेसस्स असंखे०भागमैत्तदंसणादो । तं पि कुदो ? सम्मत्तदव्वस्स गुणसंकमभागहारेण खंडिदमिच्छत्तदव्वस्स एयखंडपमाणत्तादो । गुणसेहीए णहदब्बभागहारस्स गुणसंकमभागहारं पेखिदूण असंखेजगुणत्तादो च । तम्हा अणंताणुबंधिलोभदव्वादो सम्मामिच्छत्तदव्वं विसेसाहियं ति सिद्धं ।
$ १३५. क्योंकि सातवीं पृथिवीमें अनन्तानुबन्धी लोभके उत्कृष्ट द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग लब्य आवे उतना मिथ्यात्वका उत्कृष्ट द्रव्य सम्यग्मिथ्यात्वमें अधिक पाया जाता है।
शंका-सातवीं पृथिवीसे निकल कर और उसकायिकोंमें उत्पन्न होकर वहां त्रसस्थितिको समाप्त करके पुनः एकेन्द्रियोंमें दो तीन भव बिताकर मनुष्योंमें उत्पन्न होकर वहां अन्तमुहूर्त अधिक आठ वर्षे जाने पर सम्यक्त्वको प्राप्त करके मिथ्यात्वके द्रव्यके सम्यग्मिथ्यात्वके ऊपर प्रक्षिप्त करने पर सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र होता है। परन्तु यह द्रव्य अनन्तानुबन्धी लोभके द्रव्यसे विशेष अधिक नहीं हो सकता, क्योंकि उस समय तक मिथ्यात्वके द्रव्यमेंसे पल्यके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण समयप्रवद्ध सम्यक्त्वप्रकृतिरूपसे परिणत हो जाते है और गुणश्रेणिनिर्जराके द्वारा प्रत्येक समयमें असंख्यातगुणे समयप्रबद्धोंका गलन हो जाता है।
समाधान--नहीं, क्योंकि इन दोनों प्रकारों से जो मिथ्यात्वका द्रव्य नष्ट होता है वह अनन्तानुबन्धी लोभके द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे तत्प्रमाण मिथ्यात्व प्रकृति विशेषके असंख्यातवें भागमात्र देखा जाता है।
शंका-वह भी क्यों है ?
समाधान--क्योंकि गुणसंक्रमभागहारके द्वारा मिथ्यात्वके द्रव्यके भाजित करने पर जो एक भाग लब्ध आवे तत्प्रमाण सम्यक्त्वका द्रव्य है और गुणश्रेणिके द्वारा नष्ट होनेवाले द्रव्यका भागहार गुणसंक्रमभागहारको देखते हुए असंख्यातगुणा है, इसलिए अनन्तानुबन्धी लोभके द्रव्यसे सम्यमिथ्यात्वका द्रव्य विशेष अधिक है यह सिद्ध हुआ ।
१. प्रा० प्रतौ '-समयपबद्धाणं गणियत्तादो' इति पाठः ।
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