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________________ गा० २२ ] वित्तीए उत्तरपयडिभुजगारकाला * णाणाजीवेहि कालो । $ १२६. सुगममेदं । * सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणं भुजगार अवद्विद-अवत्तब्बद्विदिविहत्तिया haचिरं कालादो होंति ? $ १२७. एदं पि सुगमं । * जहण्णेण एगसमश्रो । $ १२८. कुदो ? सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणं भुजगार - श्रवदि अवत्तव्वाणि एगसमयं कारण विदियसमए सव्वेसिं जीवाणमप्पदरस्स गमवलंभादो । * उक्कस्सेण आवलिया संखेज्जदिभागो । $ १२६. कुदो ? सगसगंतरकाले अदिकंते भुजगार अवट्ठिद अवतव्वाणि कुणमागाणं णिरंतर मावलि० असंखे० भागमेत्तकालमवद्विदावत्तव्य-भुजगाराणमुवलंभादो । * अप्पदरट्ठिदिविहत्तिया केवचिरं कालादो होंति ? $ १३०, सुगमं । * सव्वद्धा । विशेषार्थ — यहाँ विभंगज्ञानी आदि जितनी मार्गेणाओं में अपने अपने सम्भव पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन बतलाया है वह उन उन मार्गणाओं के स्पर्शनको जान कर घटित कर लेना चाहिए । कोई विशेषता न होनेसे उसका हमने अलगसे स्पष्टीकरण नहीं किया है । इसप्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ । ६७ * अब नानाजीवकी अपेक्षा कालानुगमका अधिकार है । $ १२६. यह सूत्र सुगम है । * सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की भुजगार, अवस्थित और अवक्तव्यस्थितिविभक्तिवाले जीवोंका कितना काल है ? $ १२७. यह सूत्र भी सुगम है । * जघन्य काल एक समय है । $ १२८. क्योंकि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तियों को एक समय तक करके दूसरे समय में उन सब जीवोंका अल्पत्तर स्थितिविभक्तिमें गमन पाया जाता है । * उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है । $ १२६. क्योंकि अपने अपने अन्तरकालके व्यतीत हो जाने पर भुजगार, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तियों को करनेवाले जीवोंके निरन्तर आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक अवस्थित, अवक्तव्य और भुजगार पद पाये जाते हैं । * अल्पतरस्थितिविभक्तिवाले जीवोंका कितना काल है ? $ १३०. यह सूत्र सुगम है । * सब काल है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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