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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[हिदिविहत्ती भागो अट्ठ तेरह चोदसभागा वा देखणा । णवरि इत्थि०-पुरिस० भुज०-अवढि० अट्ठबारस चोदस० देसूणा। अणंताणु०चउक्क० एवं चेव । णवरि अवत्तव्व० ओघं । सम्मत्त-सम्मामि० अप्पदर० मिच्छत्तभंगो। सेस० ओघं । वेउव्वियमिस्स० खेत्तभंगो।
.६१२५. विहंग० मिच्छत्त०-सोलसक०-णवणोक० तिण्णिपदा सम्मत्त-सम्मामि० अप्पदर० पंचिंदियभंगो। आभिणि-सुद्०-ओहि० सवपयडि० अप्पदर० लोग० असंखे भागो अट्ट चोद्द० देसूणा। एवमोहिदंस०-सम्मादि०-खइय०-वेदय०-उवसम०सम्मामिच्छादि ित्ति । संजदासंजद० सवपयडि० अप्पदर० लोग० असंखे०भागो छ चोदस भागा वा देसूणा। तेउ० सोहम्मभंगो । पम्म० सहस्सारभंगो। सासण. सव्वपयडि० अप्पदर० लोग० असंखे०भागो अट्ट बारस चोदस० देसूणा ।
एवं पोसणाणुगमो समत्तो। जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और ब्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछकम आठ और कुछकम तेरह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने सनालीके चौदह भागोमेंसे कुछकम आठ और कुछकम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अपेक्षा इसी प्रकार जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य स्थितिभक्तिवाले जीवोंका भंग ओघके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवोंकाभंग मिथ्यात्वके समान है। तथा शेष कथन ओघके समान है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें क्षेत्रके समान भंग है।
विशेषार्थ_अन्यत्र वैक्रियिककाययोगियोंका स्पर्श जो तीन प्रकारका बतलाया है वही यहाँ मिथ्यात्व आदिके तीन पदोंकी अपेक्षा प्राप्त होता है जो मूल में बतलाया ही है। किन्तु इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी भजगार और अल्पतर स्थितिवालोंका वही स्पर्श प्राप्त होता है जो पंचन्द्रिय जीवोंके पहले बतला पाए हैं इसलिये यहाँ इसका तत्प्रमाण कथन किया। वैक्रियिककाययोगियोंमें अनन्तानुबन्धी चतुष्कका स्पर्श इसी प्रकार है। यह जो कहा है सो इसका यह तात्पर्य है कि जिस प्रकार इनमें मिथ्यात्व आदिके सम्भव पदोंका स्पर्श बतलाया है उसीप्रकार अनन्तानुबन्धी चतुष्कके अवक्तव्य पदको छोड़कर शेष पदोंका स्पर्श जानना चाहिये । शेष कथन सुगम है ।
६ १२५. विभंगज्ञानियों में मिथ्यात्व सोलह कषाय और नौ नोकपायोंके तीन पद और सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतरस्थितिका भंग पंचेन्द्रियोंके समान है। आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। संयतासंयतोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। पीतलेश्याका भंग सौधर्मके समान और पद्मलेश्याका भंग सहस्रार कल्पके समान है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है ।
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