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________________ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ ट्ठिदिविहत्ती ३ सम्मत्त० सम्मामि० भुज० श्रवट्ठि ० ज० अंतोमु०, उक्क० सगट्ठिदी देभ्रूणा । अप्पदर० ज० एस ०, अव्वत्तव्य० ज० पलिदो० असंखे ०भागो । उक्क० सगट्ठिदी देणा । एवं पुरिस० चक्खु०सणि त्ति । ४८ $ ८७. पंचमण० - पंचवचि ० मिच्छत्त-सोलसक० णवणोक० भुज० - अप्पदर ० अव०ि ज० एगसमओ, उक्क अंतोमु० । सम्म० सम्मामि० अप्प० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० | सेसाणं णत्थि अंतरं । एवमोरालिय० वेडव्वि ० चत्तारिकसायाणं । - ८८. कायजोगि० मिच्छत्त-सोलसक० णवणोक० भुज० अवट्टि० ज० एस ०, उक० पलिदो ० असं० भागो अप्प० ज० एस ०, उक्क० अंतोमु० । अणंताणु ०चक्क० अवतन्त्र ० णत्थि अंतरं । सम्मत्त सम्मामि० भुज ० - अवट्टि० - श्रवत्तव्व० णत्थि अंतरं । अप्पदर० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । कम्मइय० छब्वीसं प्यडीणं भुज०अप्पदर० - अव०ि जहण्णुक० एगसमओ । सेसं णत्थि अंतरं । एवमणाहार० । एगस ०, ९८६. इत्थि० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० भुज० श्रवडि ० ज० उक्क० पणवण्ण पलिदो० देसूणाणि । अप्पदर० ओघं । णवरि अणंताणु ० चउक्क० अप्पइतनी विशेषता है कि वक्तव्य स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तियों का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है । अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर पल्यो के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । तथा दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है । इसी प्रकार पुरुषवेदी, चक्षुदर्शनवाले और संज्ञी जीवों के जानना चाहिए । ८७. पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगी जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तियों का जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । तथा शेष स्थितिविभक्तियों का अन्तर नहीं है । इसी प्रकार औदारिककाययोगी, वैक्रियिककाययोगी और चार कषायवाले जीवों के जानना चाहिए । § ८८. काययोगियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकपायोंकी भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अवक्तव्य स्थितिविभक्तिका अन्तर नहीं है । सम्यक्त्व ओर सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिका अन्तर नहीं है । अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । कामंणकाययोगियों में छब्बीस प्रकृतियों की भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तियों का जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है । शेषका अन्तर नहीं है । इसी प्रकार अनाहारकोंके जानना चाहिए । S =६. स्त्रीवेदियों में मिध्यात्व सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी भुजगार और अवस्थित स्थितिविभक्तियों का जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पचवन पल्य है । अल्तर स्थितिविभक्तिका अन्तर ओघ के समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धी १. ता-प्रतौ एगस० ।... अठ-इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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