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________________ ३६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे हिदिविहत्ती ३ मप्पदरस्स च ज० एगसमो, उक्क० बावीस वस्ससहस्साणि देसूणाणि । सेसमोघं । ओरालियमिस्स० मिच्छत्त० भुज० ज० एगस०, उक्क० तिण्णि समया । अप्पद० एगस०, उक्क० अंतोमु०। अवढि० ज० एगस०, उक्क अंतोमु० । सोलसक०-णवणोक० भुज० ज० एगस०, उक० अट्ठारस समया। अवढि० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अप्प० ज० एगस०, उक० अंतोमु०। सम्मत्त-सम्मामि० अप्प० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । वेउव्वियमिस्स अट्ठावीसपयडीणमप्प० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु०। सेस० विदियपुढविभंगो। णवरि पदविसेसो जाणियव्वो। आहारकाय० सव्वपय० अप्प० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु । आहारमिस्स० सव्वपय० अप्प० जहण्णुक्क० अंतोमु० । एवमुवसमसम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं । कम्मइथ० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० भुज० ज० एगसमओ, उक० वे समया। अप्प०-अवढि० ज० एगसमग्रो, उक्क० तिणि समया । सम्मत्त-सम्मामि० अप्प० ज० एगस० । उक० तिणि समया। एवमणाहार० । सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है। शेष कथन ओघके समान है। औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यात्वकी भुजगार स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल तीन समय है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थित स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी भुजगार स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अठारह समय है। अवस्थित स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त है। अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। शेषका भंग दूसरी पृथिवीके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि पदविशेष जानना चाहिये। आहारककाययोगियोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्महूर्त है। आहारकमिश्रकाययोगियोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । कार्मणकाययोगियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल दो समय है। अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल तीन समय है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतर स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल तीन समय है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। विशेषार्थ—पाँचों मनोयोग, पाँचों वचनयोग और वैक्रियिककाययोगका उत्कृष्टकाल अन्तमहूर्त है, अतः इनमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त कहा। औदारिककाययोगका उत्कृष्टकाल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है, अतः इसमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिका उत्कृष्टकाल कुछ कम बाईस हजार वर्ष कहा। औदारिकमिश्रकाययोगका उत्कृष्टकाल अन्तर्महूर्त है अतः इसमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर स्थितिका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त कहा । वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें भी इसी प्रकार समझना चाहिये। तथा इसी प्रकार आहारककाययोग और आहारकमिश्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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