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________________ ११ गा०२२ . द्विदिविहत्तीए उउरपयडिभुजगारसामित्त 'अप्पदरविहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स सम्मोइहिस्स मिच्छाइटिस वा । अणंताणु० चउक्कस्स तिण्हं पदाणमेवं चेव वत्तव्वं । अवत्त० कस्स ? अण्ण० पढमसमयमिच्छाइहिस्स सासणसम्माइद्विस्स वा । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं भुजगारविहत्ती कस्स ? सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं तप्पाओग्गजहण्णहिदिसंतकम्मिरण मिच्छत्तस्त तप्पाओग्गुकस्सहिदिसंतकम्मिएण मिच्छादिट्टिणा सम्मत्ते गहिदे तस्स पढमसमयसम्मादिहिस्स; सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुवरि मिच्छत्तद्विदीए तत्थ सन्धिस्से उदयावलियवजाए संकंतिदसणादो। उवरिमसुण्णम्मि कधं संकमो ? ण, तत्थ वि मिच्छत्तसंकतीए विरोहाभावादो। अप्पदर० कस्स ? अण्णद० सम्माइटिस्स मिच्छाइट्ठिस्स वा । अवद्विदं कस्स ? अण्णद० जो समउत्तरमिच्छत्तद्विदिसंतकम्मिओ सम्मत्तं पडिवण्णो तस्स । अवत्तव्वं कस्स ? अण्णदस्स जो असंतकम्मिओ सम्मत्तं पडिवण्णो तस्स । एवं सव्वणेरइय-तिरिक्ख-पंचिंदिय. तिरिक्ख-पंचिंतिरि०पज०-पंचिंतिरि०जोणिणि-मणुसतिय-देव-मवणादि जाव सहस्सार०-पंचिंदिय-पंचिं०पज०-तस-तसपज०-पंचमण०-पंचवचि०-कायजोगि० ओरालि.. वेउवि०-तिण्णिवेद-चत्तारिक०-असंजद-चक्खु०-प्रचक्खु०-पंचले०-भवसि०-सण्णिआहारि त्ति । किसके होती है ? किसी भी मिथ्यादृष्टि जीवके होती है। अल्पतरविभक्ति किसके होती है ? किसी सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीवके होती है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उक्त तीन पदोंका कथन इसी प्रकार करना चाहिये । अवक्तव्यविभक्ति किसके होती है ? किसी एक मिथ्यादृष्टि या सासादनसम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगारस्थितिविभक्ति किसके होती है ? सम्यक्त्व और सम्यम्मिथ्यात्वके तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिसत्कर्मवाले और मिथ्यात्वके तत्प्रायोग्य उत्कृष्टस्थितिसत्कर्मवाले मिथ्यादृष्टि जीवके द्वारा सम्यक्त्वके ग्रहण करने पर उसके प्रथम समयमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगारस्थितिविभक्ति होती है. क्योंकि वहाँ पर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वमें मिथ्यात्वकी उदयावलिसे रहित शेष समस्त स्थितिका संक्रमण देखा जाता है। शंका-सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति से ऊपर शून्यमें मिथ्यात्वका संक्रमण कैसे होता है ? समाधान--नहीं, क्योंकि वहाँ भी मिथ्यात्वके संक्रमण होनेमें कोई विरोध नहीं है। अल्पतर स्थितिविभक्ति किसके होती है ? किसी एक सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीवके होती है। अवस्थितस्थितिविभक्ति किसके होती है ? जो मिथ्यात्वके एक समय अधिक स्थिति सत्कर्मके साथ सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है ऐसे किसी एक जीवके होती है। अवक्तव्यस्थितिविभक्ति किसकेहोती है१ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वरूप सत्कर्मसे रहित जो कोई एक जीव सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है उसके अवक्तव्यस्थितिविभक्ति होती है। इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तियेच, पंचेद्रिय तियच पर्याप्त, पंचेन्द्रि तियेच योनिमती, सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार स्वर्गतकके देव, पंचेन्द्रिय, पंचेंद्रिय पर्याप्त, त्रस, त्रस पर्याप्त, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, तीनों वेदवाले, क्रोधादि चारों कषायवाले, असंयत, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, कृष्णादि पाँच लेश्यावाले, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिए। 1ता०प्रतौ भवहिदबिहत्ती इति पाठः। २ भा०प्रातौ-संतकम्मेण इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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