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________________ पा० २२] द्विदिविहत्तीए वड्ढीए अप्पाबहुअं २७७ एहिंतो तत्थेव संखेजभाणहाणिविहत्तिया संखे०गुणा। असण्णिपंचिंदिएसु संखे०भागहाणिविहत्तिया संखे०गुणा । सण्णिपंचिंदिएहितो असंखे गुणेसु असण्णिपंचिंदिएसु सत्थाणे संखे गुणहाणिविवजिए सु संखे०भागहाणिविहत्तिएहि असंखेगुणेहि होदव्वं । ण च सण्णीहिंतो असण्णीणमसंखेजगुणत्तमसिद्धं । सव्वत्थोवा सण्णिणqसयवेदगब्भोवक्कंतिया। सण्णिपुरिसवेदगब्भोवक्कंतिया संखेज्जगुणा। सण्णिइत्थिवेदगब्भोवक्कंतिया संखे०गुणा । सण्णिणqसयवेदसम्मुच्छिमपज्जत्ता संखे०गुणा । सण्णिणqसयवेदसम्मुच्छिमअपज्जत्ता असंखे०गुणा । सण्णिइत्थि-पुरिसवेदगम्भोवक्कंतिया असंखे०वस्साउआ दो वि तुल्ला असंखे०गुणा । असणिणqसयवेदगम्भोवक्कतिया संख०गुणा । असण्णिपुरिसवेदगब्भोवक्कंतिया संखे गुणा । असण्णिइत्थिवेदगम्भोवक्कंतिया संखे०गुणा। असण्णिणqसयवेदसम्मुच्छिमपज्जत्ता संखेगुणा। असण्णिणqसयवेदसम्मुच्छिमअपज्जत्ता असंखेजगुणा त्ति एदम्हादो खुद्दाबंधसुत्तादो असंखेन्गुणत्तसिद्धोए ? ण एस दोसो, जदि वि सण्णिपंचिंदिएहिंतो असण्णिपंचिंदिया असंखे०गुणा होंति तो वि संखेजभागहाणि विहत्तिया संखेज्जगुणा चेव, तिव्वविसोहीए जीवाणं तत्थ बहुआणमभावादो। बहुआ णस्थि ति कुदो णव्वदे ? संखे०गुणहाणिहानिस्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंज्ञी पंचेन्द्रियोंमें संख्यातभागहानिस्थितिविभक्तिवाले जीव सं यातगुणे हैं। शंका-चूँकि संज्ञी पंचेन्द्रियोंसे असंख्यातगुणे असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव स्वस्थानमें संख्यातगुणहानिसे रहित हैं अतः उनमें सख्यातभागहानिस्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यातभागहानिस्थितिविभक्तिवाले संज्ञी जीवोंसे असंख्यातगुणे होने चाहिये ? यदि कहा जाय कि सज्ञियोंसे असंज्ञी असख्यातगुणे हैं यह बात असिद्ध है सो भी बात नहीं है, क्योंकि गर्भसे उत्पन्न हुए नपुसकवेदी सज्ञी जीव सबसे थोड़े हैं। गर्भसे उत्पन्न हुए पुरुषवेदी संज्ञी जीव सं यातगुणे हैं । गर्भसे उत्पन्न हुए स्त्रीवेदी सभी जीव सख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेदी संज्ञी सम्मूर्छन पर्याप्त जीव संख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेदी समूर्च्छन अपर्याप्त संज्ञी जीव असख्यातगुणे हैं। गर्भसे उत्पन्न हुए स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी असख्यातवर्षकी आयुवाले दोनों ही समान होते हुए असंख्यातगुणे हैं। गर्भसे उत्पन्न हुए नपुंसकवेदी असज्ञी जीव सख्यातगुणे हैं। गर्भसे उत्पन्न हुए पुरुषवेदी असज्ञी जीव सख्यातगुणे हैं। गर्भसे उत्पन्न हुए स्त्रीवेदी असज्ञी जीव संख्यातगुणे हैं। असंज्ञी नपुसकवेवाले संम्मूर्छन पर्याप्त जीव संख्यातगुणे हैं। असज्ञी नपुंसकवेदवाले समूछन अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं। इस प्रकार खुद्दाबन्धके इस सूत्रसे सज्ञियोंसे असज्ञी जीव असंख्यातगुणे हैं यह बात सिद्ध हो जाती है ? समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि यद्यपि सज्ञी पंचेन्द्रियोंसे असज्ञी पंचेन्द्रिय जीव असख्यातगुणे होते हैं तो भी सख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे ही होते होते हैं। क्योंकि वहाँ पर बहुत जीवोंके तीव्र विशुद्धि नहीं पाई जाती है। शंका-वे बहुत नहीं हैं यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-संख्यातगुणहानिविभक्तिवालोंसे संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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