SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ जयधवलासाहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ समयाविरोहेण छवड्डिमुवगयाओ' कजभेदेण चउब्भेदसमुवगयाओ। काणि ताणि चत्तारि कजाइं? अधद्विदिगलणा असंखे०भागहाणीए द्विदिखंडयघादो संखे०भागहाणीए हिदिखंडयघादो संखेजगुणहाणीए द्विदिखंडयघादो चेदि । तत्थ एगभवम्मि संखेज गुणहाणिहेदुपरिणामेसु परिणमणवारा एगजीवस्स थोवा । संखे०भागहाणिहेदुविसोहिट्ठाणेसु परिणमणवारा संखे-गुणा, संखेजगुणहाणिहेदुविसोहिहाणेहिंतो संखे०भागहाणिहेदुविसोहिट्ठाणाणं संखे०गुणत्तादो थोवजत्तेण पाविजमाणत्तादो वा । असंखे०भागहाणीए हिदिखंडयघादणवारा संखेगुणा। कारणं पुव्वं व वत्तव्यं । अधहिदिगालणवारा असंखे०गुणा, सगहिदिसंतादो हेट्ठिमद्विदिवंधहेदुपरिणामाणमसंखे०गुणत्तादो। तेण संखेजगुणहाणिविहत्तिएहिंतो संखेज्जभागहाणिविहत्तिया संखे० गुणा त्ति सिद्धं । संखे०गुणहाणिं सण्णिपंचिंदिया चेव कुणंति । संखेजभागहाणिं पुण सण्णिपंचिंदिया असण्णिपंचिंदिया चउरिंदिय-तीइंदिय-बीइंदिया च कुणंति । तेण संखेजगुणहाणिविहत्तिए हितो संखेज्जभागहाणि विहत्तिएहिं असंखेजगुणेहि होदव्वमिदि ? ण, पंचिंदिएहिंतो तसरासीए असंखेजगुणत्ताभावादो। सण्णिपंचिंदियाणं संखेजगुणहाणिविहत्ति समाधान-इनका प्रमाण असंख्यात लोक है। जो जघन्य विशुद्धिसे लेकर यथाझास्त्र छह वृद्धियोंको प्राप्त होती हुई कार्यभेदसे चार प्रकारकी हैं। शंका—ये चार कार्य कौनसे हैं ? समाधान–अधःस्थितिगलना, असंख्यातभागहानिके द्वारा स्थितिकाण्डकघात, संख्यातभागहानिके द्वारा स्थितिकाण्डकघात और संख्यातगुणहानिके द्वारा स्थितिकाण्डकघात ये चार कार्य हैं। इनमें एक भवमें एक जीवके संख्यातगुणहानिके कारणभूत परिणामोंमें परिणमन करनेके बार सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागहानिके कारणभूत विशुद्धिस्थानोंमें परिणमन करनेके बार संख्यातगुणे हैं, क्योंकि संख्यातगुणहानिके कारणभूत विशुद्धिस्थानोंसे संख्यातभागहानिके कारणभूत विशुद्धिस्थान संख्यातगुणे होते हैं। अथवा संख्यातभागहानिके कारणभूत विशुद्धिस्थान अल्प यत्नसे प्राप्त होते हैं, इसलिये संख्यातगुणहानिके कारणभूत बिशुद्धिस्थानोंसे ये संख्यातगुणे होते हैं। इनसे असंख्यातभागहानिके द्वारा होनेवाले स्थितिकाण्डकघातके बार संख्यातगुणे हैं। यहाँ भी कारण पहलेके समान कहना चाहिये । इनसे अधःस्थितिगलनाके बार' असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि अपने स्थितिसत्त्वसे अधस्तन स्थितिबन्धके कारणभूत परिणाम असंख्यातगुणे होते हैं। इसलिये संख्यातगुणहानिविभक्तिवाले जीवोंसे संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे होते है यह सिद्ध हुआ। शंका-संख्यातगुणहानिको संज्ञी पञ्चेन्द्रिय ही करते हैं। परन्तु संख्यातभागहानिको संजी पंचेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, चौइन्द्री, तीन्द्रिय और दोइन्द्रिय जीव करते हैं, अतः संख्यातगुणहानिविभक्तिवाले जीवोंसे संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे होने चाहिये ? समाधान नहीं, क्योंकि पंचेन्द्रिय जीवोंसे त्रसजीवराशि असंख्यातगुणी नहीं है। संज्ञी पंचेन्द्रियोंमें संख्यातगुणहानिस्थितिविभक्तिबाले जीवोंसे वहीं पर संख्यातभाग१ ता०प्रतौ छवडिमुवगयादो ओ इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy