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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ विहत्तिएहितो संखे०भागहाणिविहत्तिया संखेजगुणा त्ति चुण्णसुत्तादो णव्वदे । चउरिदिएसु संखे भागहाणिवि० विसेसाहिया। तीइंदिए सु संखे भागहाणिवि० विसे० । वीइंदिएसु संखे०भागहाणि वि०, विसेसाहियकमेण रासीणमवहाणादो । तदो संखे०गुणहाणिविहत्तिएहितो संखे०भागहाणि विहत्तियाणं सिद्ध संखेजगुणत्तं ।
* संखेजगुणवडिकम्मंसिया असंखेजगुणा । ___४६४. एदस्स सुत्तस्स अत्थो बुच्चदे । तं जहा–संखेजगुणवड्डी सण्णिपंचिंदिएसु चेव होदि ण अण्णत्थ, संखेजगुणवडिकारणपरिणामाणमण्णत्याभावादो। तं पि कुदो ? साभावियादो। ते च तत्थतण संखे०गुणवड्डिविहत्तिया जीवा संखे गुणहाणिविहत्तिएहि सरिसा । तं कुदो णव्वदे ? विदियादिपुढवीसु सोहम्मादिकप्पेसु च संखेजगुणवड्डि-संखे गुणहाणिकम्मंसिया दो वि सरिसा ति उच्चारणवयणादो णव्वदे । एवं संते संखे०गुणहाणिविहत्तिए पेक्खिदूण संखे०गुण-संखे०भागहाणिविहत्तिए हितो संखेजगुणवड्डिविहत्तियाणमसंखे०गुणत्तं ण घडदि त्ति ण पच्चवडेयं, एइंदिएहितो सख्यातगुणे हैं इस चूर्णिसूत्रसे जाना जाता है।
चतुरिन्द्रियोंमें सख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। तेइन्द्रियोंमें संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। दोइन्द्रियोंमें सल्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं, क्योंकि ये राशियाँ उत्तरोत्तर विशेष अधिक क्रमसे अवस्थित हैं। अतः सख्यातगुणहानिस्थितिविभक्तिवालोंसे सख्यातभागहानिस्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं यह बात सिद्ध हुई।
* संख्यातगुणवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। .
६४६४. अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं। जो इस प्रकार है-सत्यातगुणवृद्धि सज्ञी पंचेन्द्रियों में ही होती है अन्यत्र नहीं होती, क्योंकि अन्यत्र सख्यातगुणवृद्धिके कारणभूत परिणाम नहीं पाये जाते ।
शंका-ऐसा क्यों होता है ? समाधान-स्वभाव से होता है।
और वे सख्यातगुणवृद्धिस्थितिविभक्तिवाले जीव वहींके सख्यातगुणहानिस्थितिविभक्तिवाले जीवोंके समान होते हैं।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान—दूसरी आदि पृथिवियोंमें और सौधर्मादि कल्पोंमें संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानि कर्मवाले दोनों प्रकारके जीव समान हैं, इस प्रकारके उच्चारणावचनसे जाना जाता है।
_शंका-ऐसा रहते हुए संख्यातगुणहानिविभक्तिवाले जीवोंको देखते हुए संख्यातगुणहानि और संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीवोंसे संख्यातगुणवृद्धिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं यह बात नहीं बनती है ?
समाधान—ऐसा निश्चय नहीं करना चाहिए, क्योंकि जो एकेन्द्रियोंमेंसे विकलेन्द्रिय
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