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________________ २७२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ ज० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । अवढि० जह० एगस०, उक्क० अंगुल. असंखे०भागो। ४५२. दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणीणं पंचिंदियभंगो । लेस्साणुवादेण किण्ह०णील-काउ० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखे भागवड्डि-हाणि-अवढि० णत्थि अंतरं । दोवड्डि-दोहाणि० ज० एगस०, उक्क अंतोमुः। एवमणंताणु०चउक्क० । णवरि असंखे०गुणहाणि-अवत्तव्व० ज० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भाणहाणि० णत्थि अंतरं। चत्तारिवड्डि-तिण्णिहाणिअवत्तव्व० ज० एगस०, उक्क० चउवीस अहोरत्त सादिरेगे। अवहि० ज० एगस०, उक्क० अंगुलस्स असंख०भागो। ४५३. तेउ०-पम्म०मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणि-अवढि०णत्थि अंतरं । तिण्णिवड्डि-दोहाणि० ज० एगस०, उक० अंतोमुहुत्त । मिच्छत्त० असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० छम्मासा । एवमणंताणु०चउक्क० । णवरि असंखे०गुणहाणि-अवत्तव्व० ज० एगस०, उक० चवीसमहोरत्ते सादिरेगे । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थिअंतरं। चत्तारिवड्डि-तिण्णिहाणि-अवत्तव्व० ज० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । अवहि० ज० एग०, उक्क० अंगुलस्स जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६४५२. दर्शनमार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनवालोंका भंग पंचेन्द्रियोंके समान है। लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावालोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूत है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६४५३. पीत और पद्मलेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। तीन वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुकको अपेक्षा जानना चाहिए। किन्तु असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। अवस्थितका जघन्य अन्तर एक सयय और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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