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________________ गा० २२] द्विदिविहत्तीए वड्ढोए अंतर २७१ मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि० संखे०गुणहाणि-असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० छम्मासा। ४४९. सुहुमसांपराइय० तेवीसं पयडीणमसंखे०भागहाणि० दंसणतियस्स संखे०भागहाणि० ज० एगस०, उक्क० वासपुधत्तं । लोभसंजल० असंखे०भागहाणिसंखे०भागहाणि-संखे०गुणहाणि० जहं० एगस०, उक्क० छम्मासा ।। $४५०. संजदासंजद० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणि णत्थि अंतरं । संखे०भागहाणि० ज० एगस०, उक्क० चउवीस- . महोरत्ते सादिरेगे। मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि० संखे गुणहाणि-असंखे०गुणहाणिक जह० एगस०, उक० छम्मासा । अणंताणु०चउक्क० कसायभंगो। णवरि संखे०गुणहाणि-असंखे०गुणहाणि० जह० एगसमओ, उक० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। ६४५१. असंजद० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असखे०भागवड्डि-हाणिअवढि णत्थि अंतरं । दोवड्दि-दोहाणि० जह० एगस०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । मिच्छत्त० असंखे गुणहाणि० ज० एगस०, उक० छम्मासा। एवमणंताणु० चउक्क० । णवरि असंखे०गुणहाणि-अवत्तव० जह० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। सम्मत्तसम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं। चत्तारिवाड्दि-तिण्णिहाणि-अवत्तव्व० अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। $ ४४९. सूक्ष्मसांपरायिक संयतोंमें तेईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि और तीन दर्शनमोहनीयकी संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है । लोभसंज्वलनको असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। ४५०. संयतसंयतोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग कषायके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। ६४५१. असंयतोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षासे जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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