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________________ २७० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ अंतरं । संखे०भागहाणि-संखे गुणहाणि० जह० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। असंखे०गुणहाणि० जह० एगस०, उक्क० छम्मासा । णवरि अणंताणु०चउक्क० असंखे गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० चउवीस अहोरत्ते सादिरेगे। सम्मत्तसम्मामि० असंखे०भागहाणि० णथि अंतरं । संखे०भागहाणि-संखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० चउवोसमहोरत्ते सादिरेगे। असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० छम्मासा । एवमोहिदंसण-सम्माइहि त्ति । ४४७. मणपजवणाणी० अठ्ठावीसं पयडीणमसंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । संखे०भागहाणि० ज० एगसमओ, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। संखे गुणहाणि-असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० वासपुधत्तं । णवरि अणंताणु०चउक्क० संखे०गुणहाणि-असंखेन्गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । णवरि दंसणतियस्स छम्मासा। एवं संजद-समाइय-छेदो०संजदे त्ति । णवरि चउवीसं पयडीणं संखे गुणहाणि०-असंखे०गुणहाणि० उक्क० छम्मासा । ४४८. परिहार० अठ्ठावीसं पयडीणमसंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । संखे० भागहाणि० ज० एगस०, उक्क० चउवीस अहोरत्ते सादिरेगे । अणंताणु०चउक० संखे०गुणहाणि-असंखे०गुणहाणि० जह० एगस०, उक० चउवीस अहोरत्ते सादिरेगे । असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है । असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। ४४७. मनःपर्ययज्ञानियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है । संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उकृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। किन्तु इतनी विशेषता है कि तीन दर्शनमोहनीयकी अपेक्षा छह महीना उत्कृष्ट अन्तर है। इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि चौबीस प्रकृतियोंकी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। ४४८. परिहारविशुद्धिसंयतोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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