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________________ गा० २२] द्विदिविहत्तीए वड्ढीए अंतरं २६९ हाणि-अवट्टि ० णत्थि अंतरं । दोवड्डि-दोहाणि० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । असंखे गुणहाणि० ज० एगससओ, उक्क० वासं सादिरेयं । णवरि मिच्छत्त० छम्मासा। एवमणंताणु० चउक्क० । गवरि असंखे०गुणहाणि-अवत्तव्व० जह० एगस०, उक० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । चत्तारिवाड्डि-तिण्णिहाणि-अवत्तव्व० ज० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । अवट्टि० ज० एगस०, उक्क० अंगुल० असंखेज भागो। एवं माण-माया-लोभाणं । णवरि लोभक० असंखे०गुणहाणीए छम्मासा । $ ४४५. णाणाणुवादेण मदि०-सुद० मिच्छत्त०-सोलसक०-णवणोक० असंखे०भागवड्डि-हाणि-अवढि० णत्थि अंतरं । दोवड्डि-दोहाणि० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । तिण्णिहाणि० ज० एगस०, उक्क० चउवीस अहोरचे सादिरेगे। विहंगणाणी० मिच्छत्त०सोकसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणि-अवढि० णत्थि अंतरं । सेसपदवि० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । तिण्णिहाणि० ज० एगसमओ, उक्क० चउवीस अहोरत्ते सादिरेगे। . ४४६. आभिणि-सुद०-ओहि० छब्बीसं पयडीणमसंखे०भागहाणि० णत्थि नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है । दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है। किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवेंभागप्रमाण है। इसी प्रकार मान, माया और लोभ कषायवालोंके जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि लोभकषायकी असंख्यातगुणहानिका उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। .६४४५. ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। तीन हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। विभंगज्ञानियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। शेष पद विभक्तियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है । तीन हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। $ ४४६. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानियों में छब्बीस प्रकृतियोंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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