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________________ २६८ जयधवलासाहिदे कसायपाहुडे [ ट्ठिदिवित्त ३ असंखे ०गुणहाणि ० जह० एस ०, उक्क० वासपुधत्तं । एवमणंताणु ० चउक्क० । णवरि असंखे० गुणहाणि-अवत्तव्व० ओघं । सम्मत्त सम्मामि० असंखे ० भागहाणि ० णत्थि अंतरं । चत्तारिवड्डि-तिष्णिहाणि - अवत्तव्व० ज० एगस०, उक्क० चउवीस महोरत्ते सादिरेगे | अवडि० ज० एगस०, उक्क० अंगुलस्स असंखे ० भागो । एवं णवुंस० । वरि असंखे० भागकड्डीए वि णत्थि अंतरं । ९ ४४२. पुरिस० मिच्छत्त- बारसक० णवणोक० असंखे ० भागहाणि-अवट्ठि० णत्थि अंतरं । तिण्णिवड्डि-दोहाणि० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० | असंखे० गुणहा० जह० एगंस ०, उक्क० वासं सादिरेयं । णवरि मिच्छत्त० छम्मासा । एवमणंताणु ० चउक्क० । वर असंखे० गुणहाणि - अवत्तव्व० ज० एस ०, उक० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे सम्मत्त सम्मामि० ओघभंगो । ६ ४४३. अवगद ० 1 मिच्छत्त - सम्मत्त - सम्मामिच्छत्त-अद्रुकसाय- इत्थि - णवुंस० असंखे० भागहाणि-संखे० भागहाणि० ज० एस ०, उक्क० वासपुधत्तं । सत्तणोकसायचदुसंजलणाणमसंखे ० भागहाणि संखे० भागहाणि संखे० गुणहाणि० ज० एस ०, उक्क० छम्मासा । णवरि सत्तणोकसायाणं वासपुधतं । S ४४४. कसायाणु० कोधक० मिच्छत्त- बारसक० णवणोक० असंखे० भागवड्डिहानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व है । इसीप्रकार अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका अन्तर ओघके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानिका अन्तर नहीं है । चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है । अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसीप्रकार नपुंसकवेदीकी अपेक्षासे जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागवृद्धिका भी अन्तर नहीं है । $ ४४२. पुरुषवेदियों में मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। तीन वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक वर्ष है । किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वका उकृष्ट अन्तर छह महीना है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओधके समान है । $ ४४३. अपगतवेदियोंमें मिथ्यात्व, सम्यकत्व, सम्यग्मिथ्यात्व, आठ कषाय, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यात भागहानि और संख्यात भागहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है । सात नोकषाय और चार संज्वलनोंकी असंख्यात भागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है । किन्तु इतनी विशेषता है कि सात नोकषायोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है । $ ४४४. कषायमागणाके अनुवादसे क्रोधकषायवालों में मिथ्यात्व बारह कषाय और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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