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________________ गा० २२] हिदिविहत्तीए वड्ढोए अंतर २७३ असंखे० भागो। ६४५४. सुक०ले० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । संखे०भागहाणि-संखे गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । असंखे०गुणहाणि० जह० एगस०, उक्क० छम्मासा । एवमणंताणु०चउक्क० । णवरि असंखे०गुणहाणि-अवत्तव्व० जह० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। सम्मत्तसम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । चत्तारिवड्डि-तिण्णिहाणि-अवत्तव्व० ज० एगस०, उक० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । अवट्टिद० ओघभंगो । ४५५. भवियाणुवादेण अभवसिद्धिय० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० असंखे०भागवड्डि-हाणि[अवहि] णत्थि अंतरं । दोवड्डि-दोहाणि० ज० एगस०, उ० अंतोमु० । ४५६. सम्मत्ताणुवादेण वेदग० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-सोलसक०णवणोक० असंखे भागहाणि० णत्थि अंतरं। संखे०भागहाणि-संखे गुणहाणि. ज० एगस०, उक्क० चउवोसमहोरत्ते सादिरेगे । मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक० छम्मासा । अणंताणु०चउक्क० असंख०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। ४५७. खइय० एकवीसपयडीणमसंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । संखे०भागहाणि-संखे०गुणहाणि-असंखेगुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० छम्मासा । उवसम० उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६४५४ शुक्ललेश्यावालोंमें मिध्यात्व, बारह कषाय, और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन रात है । तथा अवस्थितका अन्तर ओघके समान है। ६४५५. भव्यमार्गणाके अनुवादसे अभव्योंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। ६४५६. सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोककषायोंकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है । मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिनरात है। ४५७. क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें इक्कीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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