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________________ २६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ ४२६. सासण. अट्ठावीसंपयडीणमसंखे०भागहाणि० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। सम्मामि० अट्ठावीसंपयडीणं असंखे०भागहा० ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असं०भागो। संखे०भागहाणि-संखे गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। मिच्छाइट्ठी० “छव्वीसंपय० असंखे०भागवभि-हाणि-अवहि० सव्वद्धा । दोवड्डि-दोहाणि० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असं०भागो। सम्मत्तसम्मामि० एइंदियभंगो। असण्णि० मिच्छाइट्ठिभंगो।। एवं कालाणुगमो समत्तो। ६४२७. अंतराणुगमेण दुविहो णिदेसो-ओघे० आदेसे० । ओघेण मिच्छत्त०बारसक०-णवणोक० असंखे भागवड्डि-हाणि-अवट्टि. णत्थि अंतरं । दोवड्डि-दोहाणिक ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । असंखे गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० छम्मासा । एवमणंताणु०चउक्क० । णवरि असंखे गुणहाणि-अवत्तव्व जह० एगस०, उक्क० चउवीसमहोत्तरे सादिरेगे। सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि अंतरं । चत्तारिवडि-तिण्णिहाणि-अवत्तव्व० ज० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। अवविद० जह० एगस०, उक० अंगुलस्स असंखे०भागो। एवमचक्खु०-भवसि०-आहारि त्ति । असंख्यातवें भागप्रमाण है। $ ४२६. सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असं यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। मिथ्यादृष्टियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका काल सर्वदा है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग एकेन्द्रियोंके समान है। असंज्ञियोंका भंग मिथ्यादृष्टियोंके समान है। इस प्रकार कालानुगम समाप्त हुआ $ ४२७. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघसे और आदेशसे । ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। दो वृद्धि और दो हानियों का जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन रात है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन रात है। अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अचक्षुदर्शनवाले, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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