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________________ गा० २२] विदिविहत्तीए वड्ढीए कालो २५९ अवत्तव्व० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिवड्डि-दोहाणि-अवढि०-अवत्तव्व० ज० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो। ४२२. अभवसि० छब्बीसंपयडीणमसंखे०भागवड्वि-हाणि०-अवढि० सव्वद्धा । दोवड्डि-हाणि० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। ४२३. वेदग० अट्ठावीसपयडीणमसंखे०भागहाणि. सव्वद्धा । संखे०भागहाणि-संखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे भागो। मिच्छत्तसम्मत्त-सम्मामि० असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० संखे० समया । अणंताणु०चउक्क० असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो । ६४२४. खइय० एकवीसंपयडीणमसंखे०भागहाणि० सव्वद्धा। संखे०भागहाणि-संखे०गुणहाणि-असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० संखे० समया । णवरि अहकसाय-लोभसंजलणाणं संखेजभागहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। ४२५. उवसम० असंखेजभागहाणि० अहावीसंपयडीणं जह० अंतोमु०, उक० पलिदो० असंखे०भागो। संखे०भागहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। अणंताणु०चउक्क० संखे गुणहाणि-असंखे गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो। और अवक्तव्यका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, दो हानि, अवस्थित और अवक्तव्यका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। $ ४२२. अभव्योंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागबृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका काल सर्वदा है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ४२३ वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यात गणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनन्तानबन्धी चतुष्ककी असं यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६४२४. क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें इक्कीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभांगहानिका काल सर्वदा है। संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। किन्तु इतनी विशेषता है कि आठ कषाय और लोभ संज्वलनकी संख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ४२५. उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। संख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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