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________________ २५८ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे भागहाणि ० सव्वद्धा । तिणिहाणि चत्तारिवड्ढि - अवडि० - अवत्तव्व० ज० उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । [ द्विदिविहत्ती ३ एगस ०, $ ४१९. किण्हणील-काउ ० छब्बीसं पयडीणमसंखे० भागवड्डि- हाणि-अवट्ठि ० सव्वद्धा । दोवड्डि-दोहाणि ० ज० एस ०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । अनंताणु ०चक० असंखे ० गुणहाणि अवत्तव्व० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । सम्मत्त - सम्मामि० सव्वपदवि० ओघं । सम्मत्त $ ४२०. तेउ-पम्म० छब्बीसंपयडीणम संखे ० भागहाणि-अवडि० सम्मामिच्छत्ताणमसंखे ० भागहाणि ० ० च सव्वद्धा । तिण्णिवड्डि-दोहाणि० जह० एस ०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । अनंताणु ० चर क० असंखे० गुणहाणि अवत्तव्व० जह० एगस ०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । मिच्छत्त० असंखे० गुणहाणि० ज० एस ०, उक्क० संखेजा समया । सम्मत्त सम्मामि० चत्ताविड्डि-तिष्णिहाणि अवट्ठि ० - अवत्तव्व० ज० एस ०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । ९४२१. सुक० अट्ठावीसं पयडीणमसंखे० भागहाणिवि० सव्वद्धा । संखे० भागहाणिसंखे० गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । असंखे० गुणहाणि ० जह० एस ०, उक्क० संखे० ० समया । णवरि अनंताशु० चउक्क० असंखे० गुणहाणिसम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानिका काल सर्वदा है। तीन हानि, चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्यका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । ४१९. कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावालोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितका काल सर्वदा है । दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सब पदवालोंका काल ओघ के समान है । ४२०. पीत और पद्मलेश्यावाले जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानि और अवस्थितका काल तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानिकाका ल सर्वदा है । तीन वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । मिथ्यात्व की असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । ९४२१. शुक्ललेश्यावालों में अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानिका काल सर्वदा है । संख्यात भागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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