SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२] द्विदिविहत्तीए वड्ढीए कालो २५७ चउक्क० संखे०भागहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। मिच्छत्तसम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु० चउक्क० संखे गुणहाणि-असंखे०गुणहाणि० ज० एगस० उक० संखे० समया। $ ४१६. सुहुमसांपराय० चउवीसंपयडीण मसंखे०भागहाणि० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । दंसणतिय० संखे०भागहाणि० जह० एयस०, उक० संखे० समया। लोभसंजल० संखे०भागहा०-संखे गुणहाणि० जह० एगस०, उक्क० संखेजा समया। णवरि संखे०भागहाणीए उक्क० आवलि० असंखे०भागो। ४१७. संजदासंजद० अट्ठावीसंपयडीणमसंखे भागहाणिवि० सव्वद्धा । संखे०भागहाणिवि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे भागो। मिच्छत्त-सम्मत्तसम्मामि० संखे०गुणहाणि-असंखे०गुणहाणि० जह० एगस०, उक० संखेजा समया। अणंताणु० चउक्क० संखे०गुणहाणि-असंखे गुणहाणि० जह० एगस०, उक० आवलि० असंखे०भागो। ६४१८. असंजद० छब्बीसंपयडीणमसंखे०भागवड्डि-हाणि-अवविद० सव्वद्धा। दोवड्डि-दोहाणि० ज० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। अणंताणु०चउक० असंखे०गुणहाणि-अवत्तव्व० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे भागो । मिच्छत्त० असंखेगुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० संखेजा समया। सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी संख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी संख्यात गुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। ६४१६. सूक्ष्मसांपरायिक संयतोंमें चौबीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तीन दर्शनमोहनीयकी संख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। लोभसंज्वलनकी संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६४१७. संयतासंयतोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। संख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणाहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ४१८ असंयतोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितका काल सर्वदा है। दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनन्तानन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy