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________________ गा० २२] हिदिविहत्तीए वड्ढीए अंतरं २६१ ४२८. आदेसेण णेरइएसु मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणिअवहि० णत्थि अंतरं । सेसपदवि० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवमर्णताणु०चउक्क० । णवरि असंखे गुणहाणि-अवत्तव्व० ज० एगस०, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णत्थि० अंतरं । चत्तारिवड्डि-तिण्णि हाणि-अवत्तव्व० जह० एगसमओ, उक्क० चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे। अवढि० जह० एगस०, उक्क० अंगुल० असंखे०भागो। एवं सव्वणेरइय-पंचिं०तिरिक्खतिय०देव-भवणादि जाव सहस्सार त्ति । ४२९. तिरिक्खेसु अट्ठावीसंपयडीणं सव्वपदवि० ओघं । पंचिं०तिरि० अपज्ज० अट्ठावीसंपयडीणं जाणि पदाणि अस्थि तेसिं पदाणं णेरइयभंगो। एवं पंचिंदियअपज०-तसअपज्जत्ताणं ।। ४३०. मणुसतिण्णि० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० असंखे०भागहाणिअवढि० णत्थि अंतरं । सेसपदवि० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । असंखे गुणहाणिक ज० एगस०, उक्क० छम्मासा। णवरि मणुसिणीसु वासपुधत्तं । अणंताणु०चउक्क० सम्मत्त०-सम्मामिच्छत्ताणं णिरओघं। मणुसअपज्ज० अट्ठावीसंपयडीणं सव्वपदवि० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । ६४२८. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यातभागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। शेष पदविभक्तियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षासे जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है। सम्यकत्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर नहीं है। चार वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है। अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार सब नारकी, तीन प्रकारके पंचेन्द्रिय तिर्यश्च, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंके जानना चाहिए। ६४२९. तिर्यंचोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सब पदस्थितिविभक्तियोंका अन्तर ओघके समान है। पंचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तकोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंके जो पद हैं उन पदोंका भंग नारकियोंके समान है। इसी प्रकार पंचेन्द्रिय अपर्याप्त और त्रसअपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए । $ ४३०. तीन प्रकारके मनुष्योंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी असंख्यात भागहानि और अवस्थितका अन्तर नहीं है। शेष पदविभक्तियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यनियोंमें वर्षपृथ्यक्त्व अन्तर है। अनन्तानुबन्धीचतुष्क, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको अपेक्षा सामान्य नारकियोंके समान जानना चाहिए। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सब पदविभक्तियोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001410
Book TitleKasaypahudam Part 04
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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