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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[हिदिविहत्ती ३ देसूणा । सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिहाणि० लोग० असंखेज्जदिभागो अट्टचोद्द० देसूणा सव्वलोगो वा।
___$ ४००. असण्णि० छब्बीसं पयडीणमसंखेज्जभागवड्डि-हाणि-अवढि० केव० ? सव्वलोगो । दोहाणि' संखेज्जमागवड्डि-संखेज्जगुणवड्डि० लोग० असंखेज्जदिभागो सव्व. लोगो वा । णवरि इत्थि-पुरिस० दोवड्ढि० लोग० असंखेज्जदिभागो । सम्मत्त-सम्मामि० चत्वारिहाणि लोग० असंखेज्जदिभागो सव्वलोगो वा।
___ एवं पोसणाणुगमो समत्तो।
थ्यात्वकी चार हानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-मिथ्यादृष्टियोंका वर्तमान स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण है । इनमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितपदके समय यह स्पर्शन सम्भव होनेसे यह उक्त प्रमाण कहा है। किन्तु इन प्रकृतियोंकी दो वृद्धि और दो हानियोंकी अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और अन्य अपेक्षासे सर्व लोकप्रमाण प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानियोंकी अपेक्षा स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । मात्र स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी दो वृद्धियोंकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और कुछ कम बारह बटे चौदह राजुप्रमाण जानना चाहिए। स्पष्टीकरण पहले कर आये हैं।
$ ४००. असंज्ञियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकका स्पर्शन किया है। दो हानि, संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोकका स्पर्शन किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी दो वृद्धिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोकका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-असंज्ञियोंका वर्तमान स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण है। इनमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित पदके समय यह स्पर्शन सम्भव है, अतः वह उक्तप्रमाण कहा है। किन्तु इनकी दो हानि और दो वृद्धियोंकी अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सब लोकप्रमाण प्राप्त होनेसे वह उक्तप्रमाण कहा है। इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानियोंकी अपेक्षा वह स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए। इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी दो हानियोंकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है यह स्पष्ट ही है।
इस प्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ।
१ श्रा. प्रतौ सव्वलोगो । दोवड्डी दोहाणी इति पाठः ।
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