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गा० २२]
वड्डिपरूवणाए पोसणं ____३९७. उवसमसम्मा० अट्ठावीसं पयडीणमसंखेज्जभागहाणि-संखेज्जभागहाणि. अणंताणु० चउक्क० संखेज्जगुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणि लोग० असंखेज्जदिभागो अट्ठचोद्दस० देसूणा । सम्मामि० अट्ठावीसं पयडीणमसंखेज्जभागहाणि-संखेज्जमागहाणिसंखेज्जगुणहाणि० लोग० असंखेज्जदिभागो अट्टचोद्द० देषणा ।
F३९८. सासणसम्माइट्ठी. अट्ठावीसं पयडीणमसंखेज्जभागहाणि० लोग० असंखेज्जदिभागो अट्ठ-बारहचोद्द० देसूणा ।
३६६. मिच्छाइट्ठी. छब्बीसं पयडीणमसंखेज्जभागवड्डि-हाणि०-अवढि० सव्वलोगो । 'दोवड्डि-दोहाणि० केव० १ लोग० असंखेज्जदिमागो अट्ठचोद्दस० देसूणा सव्वलोगो वा । णवरि इत्थि-पुरिस० दोवड्ढि० लोग० असंखेज्जदिमागो अट्ठ-बारहचोद्द०
$ ३९७. उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि और संख्यातभागहानिवाले जीवोंने तथा अनन्तानबन्धीचतष्ककी संख्यातगणहानि और असंख्यातगणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ- उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण है। इनमें अट्ठाईस प्रकृतियोंके यथासम्भव पदोंकी अपेक्षा यह स्पर्शन बन जाता है, अतः वह उक्त प्रमाण कहा है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए ।
३९८. सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने
संख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-सासादनसम्यक्त्वमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी एक असंख्यातभागहानि होती है और वह सासादनसम्यग्दृष्टियोंकी सब अवस्थाओंमें सम्भव है, अतः यहाँ इस पदकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और कुछ कम बारह बटे चौदह राजुप्रमाण स्पर्शन कहा है।
६३९९. मिथ्यादृष्टियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि; असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवालोंने सब लोकका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानिवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग, जसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद
और पुरुषवेदकी दो वृद्धिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे . कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मि
१ ता.पा.प्रत्योः सव्वलोगा वा । दोवडिट इति पाठः।
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